देश हमारा हमे जान से प्यारा..
देश में कितना अधिकार हमारा..
देश कहने को लोकतंत्र है..
जनता का अधिकारिक राज है..
फिर हमे हावी क्यों लगता..
साम्राज्य है..
क्या अभी भी हम गुलामी में..
जी रहे हैं..
घुटी घूटी सी सांसे आंसू पी रहे हैं..
पूंजीवाद क्यों आजादी पे हावी है..
क्या वही राजा भावी है..
आजादी रेत सी मुट्ठी से छूट रही है..
मुगलों अंग्रेजों की गुलामी के बाद..
अब पूंजीवाद की गुलामी..
धिरे धिरे आ रही है..
लोकतंत्र को डसती जा रही है..
पूंजीवाद की गुलामी..
जो लोकतंत्र के नाम पर..
सदियों तक बेरोक टोक चलेगी..
पूंजीवाद के सामने..
किसी की भी एक ना चलेगी..
आम आदमी के सारे रोजगार..
पूंजीपतियों ने थाम लिए..
अब किसानी ,बनियागिरी..
चमयारी , सब्जी भाजी..
सब ये पूंजीपति ही बेचेंगे..
जो ठेला या हाट लगाते थे ..
हांथ मल मल इनका मुंह देखेंगे..
खबर नबीज दिन रात चहचाहंगे..
इनके ही गुण गान करते पाएंगे..
खबर दुनिया : दुनिया का सबसे..
अमीर सोने के बरतनो में खाता है..
और उनका पानी..
रोज न्यूजीलैंड से आता है..
गरीब भूखे प्यासे ..
इनकी कहानियां सुन सुन..
चकाचौंध होएंगे..
भूख की तड़फ से गरीब बच्चे..
भगवान के सामने रोएंगे..
भगवान ने ही पूंजीपतियों को..
कलयुग के बादशाह का..
वरदान दिया है..
सतयुग आने तक पूंजीवाद को..
जनता को सहना होगा..
इन्हे राजा या बादशाह कहना होगा..
लोकतंत्र , प्रजातंत्र..
के नाम पर जनता को
बहलाया जाएगा , उसका हक..
वोट के के बहाने खाया जायेगा..
भूखी अधमरी जनता..
सपनो से दिखाए अच्छे दिनों का..
ता उमर इंतजार करेगी..
भूख बीमारी से..
तड़फ तड़फ मरेगी..
सतयुग आने तक..
यही सिलसिला चलेगा..
भगवान अवतरित होंगे सतयुग में..
तब ही भूखे को..
भरपेट भोजन मिलेगा..
सबको स्थिति है स्वीकार..
करो सतयुग आने का इंतजार..!!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
अपना देश/Apna Desh: कविता में आम लोगों की अपने देश भारत की आजादी के बारे में राय का वर्णन है।
देश को आजाद हुए 74 वर्ष हो चुके हैं। मगर देश की 80% जनता आज भी आजादी के सुख से वंचित है क्यों?
क्यों आजादी की सुविधाओ की ईमानदारी से गरीब वंचित लोगो तक नहीं पहुंची, क्यों आजादी का सुख 15 से 20% तक लोगों तक ही पहुंचा है।
आजाद देश में कोई भूखा न सोए , कोई बेरोजगार न रहे सबको अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मुफ्त या नॉमिनल खर्च पर मिलें।
इनमे से कुछ भी तो नहीं आम जनता को मिला ना शिक्षा, ना स्वास्थ सुविधा ना रोजगार।
जो स्वाभाविक रोजगार थे उनपर कॉरपोरेट जगत का कब्जा हो गया , सब्जी ,किराना ,कपड़े ,जूते , अनाज, फल फ्रूट, कटलरी ये आम जरूरत की चीजें औधोग पति बेचेंगे तो आम आदमी क्या धंधा करेगा।
जो गरीब आम आदमी के जरूरत की चीजें इस पर भी उद्योग पतियों की नजर पड़ी अचानक ये चीजें आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई , जैसे आटा, दाल,तेल, नारियल,नारियल पानी, सब्जियां , प्याज,नमक , गुड़, पानी आदि।
पहले गरीब आदमी दाल रोटी खाता था, दाल मंहगी की गई तो प्याज रोटी खाने लगा, प्याज जानबूझ कर मंहगा किया गया तो गरीब नमक रोटी खाने लगा, इसपर भी उद्योगपतियों की नजर गई , इसे भी मांग कर दिया गया तो गरीब बाजरे की रोटी सत्तू पानी के साथ खाने लग गया, पानी को भी बेचा जाने लगा Rs.20 लीटर जो कि कभी सुध घी भी इससे सस्ता आता था।
अब सुना है आम की गुठलियां गरीब खाता है, इस का भी जल्द व्यवसाई करण होगा, जैसे नारियल पानी का हुआ।
शिक्षा एक मात्र साधन था कि अगर मेहनत कर अच्छी शिक्षा गरीब कर ले तो गरीबी से ऊपर आ सकता था, उसका भी व्यवसाई करण करके इतना मंहगा कर दिया कि गरीब क्या मध्यम वर्ग की पहुंच से बाहर हो गई है।
सारे जीवन की कमाई लगाकर भी अच्छी शिक्षा गरीब की पहुंच के बाहर है, ऐसी ही नीतियां अंग्रेज करते कि भारतीय क्लर्क की नोकरी ज्यादा पढ़ाई ना कर पाए।
अब नीतियां उससे भी बढ़ कर है कि गरीब पढ़ ही न पाए।
स्वास्थ सुविधाएं निजी यानी उद्योगपतियों के हाथों में जाने से इतनी महंगी हो गई है कि गरीब बिना इलाज मर जाता है अगर किसी के पास पैसा हुआ भी तो वो हॉस्पिटल का बिल भर कर कंगाल हो जाता है।
मरीज ठीक भी हो गया तो बाद में भुखमरी से मर जाता है और पूरा परिवार घिस कर जीने लगता है।
यह सब बाते हमारे राजनेताओं और सभी बुद्धिजीवियों को पता है। महात्मा गांधी(बापू) का भी यही सपना था कि आजादी का लाभ आखरी गरीब तक पहुंचे ।
गांव गांव में लघु उद्योग लगें, किसानों को उसकी मेहनत का पूरा फल मिले, मजदूर को पूरी मजदूरी मिले, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ सुविधाएं गरीबो के लिए मुफ्त हों, गांव गांव में अच्छे स्कूल और स्वास्थ केंद्र हो ।
मगर अफसोस बापू का सपना और सभी आजादी के दीवानों का सपना जिन्होने देश को आजाद कराने के लिए कुर्बानियां दी का सपना सपना ही रह गया ।
आजादी के बाद पुंजवाद की गुलामी चुपचाप आ गई । गरीब से सिर्फ इस देश पर राज करने के लिए वोट लिया जाता है , बदले में उसे कुछ नहीं दिया जाता उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है।
जैसा कि अंग्रेज या मुगल करते थे गरीब से हर हाल में लगान वसूलते थे और उसे बंधुवा मजदूर बनाते थे।
आजादी मिल मिल गई मगर गरीब को गरीबी से आजादी नहीं मिली , बापू की भी नही सुनी गई , बापू को हर नोट पर छाप दिया।
गरीब बापू की तस्वीर नोट पर देख फूट फूट रोता है, क्यों इस देश का भविष्य सोता है।
शायद कभी चमत्कार हो जाए जब भगवान स्वयं किसी सक्षम शक्तिशाली आदमी के सपने में आए और आदेश दे ।
कि सभी प्राइवेट शिक्षा संस्थानों का राष्ट्रीय करण कर दो, सभी प्राइवेट हॉस्पिटलों का राष्ट्रीय करण कर दो और इन्हे विश्व सतरीय बनाओ, लघु उद्योग और छोटे धंधे आम आदमी और गरीबों के लिए आरक्षित कर दो, कोई भिखारी या भूखा देश में न हो, सबको रोजगार और खाने पीने का अधिकार सुनिचत हो ।सुना है कि मजूदा सरकार कुछ खास करेगी जो आजादी के बाद ना हो सका अभी तो आम जनता को इंतजार है।
तब ही भारत माता खुश होगी कि उसके बच्चे भूखे नहीं हैं और बापू और आजादी के शहीदों की आत्मा भी तृप्त होगी कि उनका कार्य पूर्ण रूप से संपन्न हुआ।
" अपना देश" कविता एक अपने सुंदर देश सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा की परिकल्पना है, भगवान की कृपा से यह जरूर एक दिन सच होगी।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
भारत माता की जय!
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
Author is member of SWA
Poem is regitered under ©copy write
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