Tuesday, November 23, 2021

गुनाहों की सजा( Gunahon Ki Saja)

      
Gunahon ki saja
Gunahon ki saja
Image from:pexels.com



ओ कुदरत के गुनाहगारों..
गुनाहों की सजा भुगतनी है तुम्हे..
तू अब आह ना कर..
दर्द हो कितना भी परवाह न कर..

जितना दर्द सहोगे..
गुनाह तुम्हारे कुदरती कम होगें..
जितनी आहें भरोगे..
सजा बढ़ेगी तुम्हारी रुह डरेगी..

तुमने भी तो जानबूझ कर..
मासूमों को अहशय दर्द दिए थे..
कितने ही अमोल जीवन..
तुम्हारी सनक ने बरबाद किए थे..

याद कर लो उन मासूमों का दर्द..
जो उस समय ..
तुम्हे बिल्कुल महसूस नहीं हुआ..
तुमने बिन डर ..
गुनाह किए खुद को खुदा समझ..

ईश्वर के कहर का..
तुझे जरा सा भी डर ना था..
वही दर्द जो तुमने दिया था..
लोट आया है तुम्हारे  पास..

कुदरत के दर्द को..
तुम्हे अकेले ही सहना है..
किसी से भी नही कहना है..
दर्द ही  गुनाहों का गहना है..

जितनी करोगे शिकायत..
दर्द उतना ही और बढ़ेगा..
कर लो गुनाहों का पश्यताप ..
कम होगा तुम्हे थोड़ा संताप..

धिरे धिरे यह सजा..
यही इसी जन्म में खत्म होगी..
अगर कहराओगे ज्यादा..
सजा अगले जन्म तक जाएगी..

वहां जाकर सजा..
कई गुना और बढ़ जाएगी..
अगला जन्म सुधार लो..
गुनाहों की माफी यही मांग लो..

अगर माफी कबुल  हुई..
तो सीधे स्वर्ग जाओगे
तो कर लो तोबा गुनाहों से..
किसी मासूम पर ..
अब कभी सितम ना ढाओगे..!!



_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना:

गुनाहों की सजा/ Gunahon ki saja कविता में कुदरत के कई गुनहगार हैं , जिन्हे इंसान की अदालत सजा न दे पाई।

 वो सजा फिर कुदरत देती है, यही इस पृथ्वी पर, यह कविता उसी सजा का वर्णन करती है। 

यह कुछ गुनाह ऐसे होते हैं जो मानव निर्मित आदलतो के  दायरे में नहीं आते जो बहुत संगीन गुनाह होकर भी गुनाह नही होता।

अगर कुछ गुनाह अदालत के दायरे में आ भी गए तो रसूखदार लोग अक्सर बच ही जाते हैं, अक्सर क्या ज्यादातर बच ही जाते हैं।

ये जो बच जाते हैं सजा से गुनाह करने के बावजूद, फिर 
उनको सजा देने के लिए कुदरत का स्वरचित नियम है।

कुदरत के उस नियम के दायरे में सब बचे गुनहगार आ जाते हैं और किए हुए गुनाहों के अनुसार सजा जरूर पाते हैं।

गुनहगार को पता भी चल पता कि सजा कब चालू हो गई , जब सजा गहराई तक पहुंच जाती है तब एहसास होने लग जाता है कि उसे सजा मिली हुई है।

जब कि गुनाहगार को अपना गुनाह अच्छे से पता रहता है, और कुदरत की सजा भी जैसे ही गुनाह किया ऑटोमैटिक उसी पल शुरू हो जाती है, गुनाहगार को भी पता नही चल पाता कि उसकी सजा शुरू हो चुकी है।

"गुनाहों की सजा" कविता में इस बात का ही वर्णन है कि तुम कितने भी रसूखदार हो या चतुर हो , कुदरत के नियम या कुदरत की नजर से नही बच सकते।
सजा जो मिलकर ही रहती है।

कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।

 ... इति ...
jpsb.blogspot.com

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