मेरे प्रभु मेरे हजूर..
मेरी सांसे चला रहें हैं..
मेरे दिल को निरंतर..
धडका रहें हैं..
मेरे रोम रोम को..
अपने होने का..
अह्सास करा रहें हैं..
मेरी ईश्वर से नजदीकियां..
कितना है..
ईश्वर का एहसास..
और भक्ति भावनां की..
मेरे अंदर बारीकियाँ ..
मेरे प्रभु मेरे अन्दर..
हर पल हैं मौजूद..
वो साथ हैं हमेशा..
तब ही तो है मेरा वज़ूद..
मगर साथ होते हुये भी..
क्यो कभी उनसे..
मेरी बात नहीं होती..
प्रभु के दर्शन की..
बहुत ज्यादा है कामना..
प्रभु बताएं..
कब होगा आपके..
दिव्य स्वरूप का सामना..
हर क्षण कण कण में..
आप व्याप्त हो..
हर जीव को प्राप्त हो..
आपकी माया की..
कोई थाह नहीं..
क्या आपसे मिलने की..
कोई राह नहीं..
आपका कल कल..
हवा नदी सा प्रवाह..
महसूस होता हर कहीं..
आप सबके पास हो..
यहीं कहीं आस पास हो..
तब भी आपकी..
मंदिर मस्जिद में..
तलाश हो ..
क्या प्रभु लगता नहीं..
यह आपकों अजीब..
जब कि आप हो..
दिलों के बहुत करीब..
निरंतर जारी है..
आपकी तलाश के..
बहुआयामी सिलसिले..
तब भी आप क्यों..
इंसान को नहीं मिले..
इंसान आपस में लड ..
क्यों मिटा रहा..
अपने शिकवे गिले..
फिर इंसान का दावा..
कि आप मस्जिद में हो..
कोई कहता है कि..
आप मंदिर में हो..
मगर मुझे क्यों होता है..
आभास कि आप..
सबके दिलों में..
करते हैं वास..
बस करना होगा विश्वास..
मुझे है एहसास..
कि आप ही हो..
मेरे दिल की धडकन..
और मेरी साँस..
इंसान क्यों नहीं समझ पाया..
आपकी माया और..
आपके होने के राज..
आप एक ही वक़्त में..
हर क्षण हर जगह हो मौजूद..
आप हो अकाल स्वरूप..
असंख्य शक्तियों ..
और ब्रह्मांड के स्वामी..
आपकी शख्सियत है..
बहू आयामी..
हे मेरे प्रभु बैकुंठ धामी ..
मुझे खुशी और आश्चर्य है..
कि आप द्वारा बनाये ..
असंख्य जीवों में..
मैं भी हूँ एक..
मैं जानता हूं..
कि आप हो सदा मेरे पास..
फिर भी क्यों मन है उदास..
मैं आपना अलग वज़ूद..
कभी नही चाहता..
मैं क्यों नहीं..
आपके स्वरूप में समाता..
आपके वज़ूद से ही..
मेरी तकदीर है..
मेरे रोम रोम में..
सिर्फ आपकी तस्वीर है..
मैं आप से सिर्फ इतना..
कहना चाहता हूँ..
प्रर्थना है, कि मैं चिरस्थाई..
आपकी तस्वीर में रहना चाहता हूँ..!!
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कविता की विवेचना:
ईश्वर से नजदीकियां/Ishwar se najdikiya कविता लेखक द्वारा ईश्वर की अनुभूति का संक्षिप्त विवरण है.
ईश्वर एक है उसके स्वरूप अनेक है, वो कण कण में व्याप्त है, यह सब इंसानों को है पता फिर भी ईश्वर को इंसान ने अनेक धर्म बना उसे अपने अनुसार अनुवादित किया और अपने बनायी ईश्वर के प्रति धारणा को अपने ढंग से प्रचारित किया.
किसी ने उन्हें निराकार माना, किसी ने अकाल बताया, किसी ने अवतार माना अपने अनुसार उनका स्वरूप बनाया.
ईश्वर भगवान अल्लाह God जिस भी नाम से संबोधित करो या किसी भी स्वरूप में उपासना करो उपासना उस आलौकिक शक्ति की होती है, जिन्हें हम ईश्वर कहते हैं .
और वो सभी जीवों के दिलों में रहते हैं, वो हैं तो हम आप और जीव हैं प्रकृति है.
किसी इंसान ने उनको कभी नहीं देखा. जिन पीर पैग़मबरों अवतारों ने देखा उसका वर्णन करने के लिये शब्द ही नहीं बने किसी भी भाषा में.
अवतारों ने इंसान से कहा तुम भी सच्चे मन से उन्हें याद करो अपने मन से सभी अवगुण उतार फेंको पवित्र सुद्ध बन जाओ और तुम भी ईश्वर को पाओ.
मगर समझते हुए भी कुछ लोग ईश्वर खुदा पर सिर्फ अपना हक जताते हैं उसी ईश्वर को दूसरे स्वरूप में मानने वालों को सताते हैं और कई बार अति उत्साह में जान से मार कर फ़क्र मनाते हैं.
कि जैसे ईश्वर पर बहुत एहसान किया और ईश्वर के वज़ूद की रक्षा की है.
जिस ईश्वर ने मरने और मारने वाले दोनों को बनाया भला उस ईश्वर के प्रति वफ़ादारी उसी ईश्वर के प्रिय को सता कर मार कर कैसे हो सकती है.
इतिहास गवाह है कुछ मुगल शासकों ने उस ईश्वर अल्लाह के नाम दुसरे स्वरूप में उसी ईश्वर को मानने वाले को बुरी मौत मारा और फ़क्र किया जैसे उनने ईश्वर पर एहसास किया या वफादारी की हो.
सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी,श्री गुरु अर्जन देव जी की शहादत इसका उदाहरण हैं.
क्या ईश्वर, खुदा ऐसी हत्या करने पर खुश हो सकता है, सबको पता है कि नहीं.
फिर भी यह खुमार जारी है इसे बिमार मानसिकता कहा जाये, राजनीति कहा जाये या ईश्वर के प्रति अज्ञान कहा जाये.
एक बार मान लिया जाये कोई धर्म विशेष कहता है कि उसका मत सही है ईश्वर एक है उसने ही सब कुछ बनाया है कायनात पृथ्वी सारे इंसान और जीव पेड़ पौधे तो फिर अपने ही खुदा या ईश्वर द्वारा बनाये इंसानों और जीवों को क्यों मार रहे हो यह विचार गंभीरता से करना चाहिये.
उसी एक ईश्वर ने ही तो सारे धर्म बनाये अगर गलत होता तो ईश्वर यह सब ना बनाता, क्या ईश्वर गलत हो सकता जो इंसान जो कभी ईश्वर से नहीं मिला उसका वज़ूद ईश्वर के सामने कुछ भी नहीं वो ईश्वर के बनाये इंसान को मार कर खुद को सही कैसे सिद्ध कर सकता है.
क्या भगवान ने उस इंसान को गलत बनाया था, क्या इंसान खुद को ईश्वर से बड़ा सिद्ध करना चाहता है जो ईश्वर की बनाई प्रकृती को नष्ट करना चाहता है.
"ईश्वर से नजदीकियां "कविता इंसान द्वारा निर्मित धर्मान्धता और उस धर्मान्धता की आड़ में ईश्वर के बनाये संसार में अत्याचार करना और स्वयं को सही सिद्ध करना और ईश्वर का परम हितेसी बताना जब कि उसने कभी ईश्वर को नहीं देखा.
ईश्वर की खूबसूरत रचना को तहस नहस करने वाला ईश्वर का हितेसी होगा कि ईश्वर का गुनाहगार यह गंभीरता से सोचने का विषय है.
और इसे धर्म धीरूओ को सोचना होगा. आश्चर्य है कि जो भी धर्म बने शांति और विश्व की अच्छाई के लिए बने तो ये विश्व को बुरा करने और ईश्वर की सुन्दर संरचना को नष्ट करने पर क्यों हैं तुले.
और उसपे दंभ कि वे सर्वश्रेष्ठ हैं और ईश्वर पर उपकार कर रहे हैं.
ईश्वर इंसान को और ज्ञान दे और जो गुनाह वो ईश्वर के बताये रास्ते के विपरित कर रहें हैं उसका एहसास दे, ईश्वर को जो इनके गुनाहों से पीड़ा होती है इन्हें बता दे.
गुनाह गार आपके दर्शन के योग्य तो नहीं, इन्हें किसी माध्यम से महसूस कराये कि ये कितना बड़ा गुनाह कर रहे हैं और इनको इसकी सज़ा कितनी भयावह मिलेगी.
..इति..
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Author is a member of SWA Mumbai
Copyright of poem is reserved.
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