अद्भुत है कुदरत की माया..
बुढ़ापे तक आते आते..
पलट देती है इंसान की काया..
इंसान का यौवन रूप रंग..
सब होता है धीरे-धीरे लोप..
इंसान को कुदरत ने..
इतना कुरूप असहाय और..
कमजोर करना है ..
जब तक इंसान..
खुद ना कह दे कि..
मुझे अब मरना है..
इंसान की इक्षा से ही..
जाते हैं उसके प्राण..
तब भी क्यों रहता है..
इंसान अपने यौवन में..
होने वाले हस्र से अनजान..
जवानी में इंसान भरता है..
ऊंची ऊंची उड़ान..
जवानी का रहता है..
भरपूर उफान..
अहम सर चढ बोलता है..
इंसान बार बार अपने..
ईमान से डोळता है..
जुबान नहीं रहती काबू..
घमंड अहं की आती है..
उसके बोलो से बदबू..
अपने रूप यौवन पर..
रहता है नाज़..
अपने अहम भरे व्यवहार से..
करता है अपनों को नाराज़..
होता होगा उस समय..
इंसान को अमर्त्य का..
एहसास..
चिरंजीव रहेगा वह सदा..
मौत ना आएगी कभी भी..
उसके आस पास..
मगर यह अटल सत्य है..
कि जो पैदा हुआ..
मरेगा भी जरूर..
फिर इंसान को..
किस बात का है गरूर..
धन दौलत भौतिक..
सुख सुविधाएं..
यही धरती पर जाएंगी छुट..
ना तू कुछ लेकर आया था..
ना ही कुछ लेकर जायेगा..
तेरा बांटा प्यार..
यहां यादों में रह जायेगा..
और रह जायेंगे याद..
तेरे किए अच्छे कर्म ..
अगर तू बुरा इंसान..
रहा होगा ,अत्याचारी व्यभिचारी..
तो तेरी यादों को..
मिटाया जायेगा जूतियों से ..
कूट कूट..
जो बोया था तुमने..
वही पाओगे..
सजा से तुम ना पाओगे छूट ..
किये कर्मों की सज़ा..
इसी जन्म में पाओगे..
बुढ़ापे में अपने किये..
बुरे कर्मो पर पस्तायोगे ..
याद रखो सदा..
कुदरत की माया..
जो कभी इंसान..
समझ नहीं पाया..
इंसान को जो बक्शा..
कुदरत ने, कृतज्ञता से..
उसे याद रखो सदा..
और कर्म करो सदा अच्छे..
एकमेव अतुल्य शक्ति है..
एक ही ईश्वर..
सब इंसान हैं..
उस एक ईश्वर के बच्चे..!!
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कविता की विवेचना:
कुदरत की माया/Kudrat ki maya कविता कुदरत की अद्भुत शक्तियों को इंगित करती है.
कुदरत ने पृथ्वी, आकाश, चांद, सितारे ,सूर्य बनाया और रची सृष्टि और उस सृष्टि में अन्य जीवों के साथ इंसान भी बनाया.
इंसान को कई शक्तियां दी और दिया दिमाग.
इंसान अहम में आकर यह भूल जाता है कि ईश्वर ने जो दिया है वह सब रूप, यौवन, शक्ति सब एक दिन इंसान से छिन् जाना है.
इस सबका एहसास उसे बुढ़ापे में आकर होता है, तब इंसान रोता है, पस्तावा करता है मगर उसने जो कर्म अहम आकर किये थे उन सबका हिसाब इसी जन्म में देना है.और बुरे किये हुये कर्मों की सज़ा यहीं भुगतनी है.
"कुदरत की माया " कविता कुदरत की माया को रेखांकित करती है, कैसे सुंदर इंसान धीरे धीरे बदसूरत जीर्ण शीर्ण हो जाता है और इंसान खुद कुदरत से मौत मागता है, जो कि जवानी में खुद को अमर मान रहा था.
..इति ..
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Author is a member of SWA Mumbai
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