समय पर मिली सफलता..
और सुख उपलब्धियों का..
मोल आनंद कुछ और ही है..
समय बितने के बाद..
मिली सफलता और सुख में..
खुशी ढूँढे नहीं मिलती..
अनमने से संतुष्ट होते हैं..
वो धमक और चहक..
नहीं कही भी दिखती..
सफलतम होने पर..
अपने दिल के पास के..
लोग बहुत याद आते हैं..
जो छोड़ गये दुख में..
ना लौटने के लिए ..
आंखे उनकी यादों को..
नीर बन भिगोती हैं..
यादों का तुफान थम जाता है..
मगर आत्मा रोती है ..
पपीहा बूँद बूँद को तरसा ..
आई ना समय पर वर्षा..
पपीहा मर गया प्यासा..
जो पूरी ना हो कैसी आशा..
जो बूंद वर्षा की उसके..
जीवन के लिए थी मोती ..
अब वो सिर्फ खारा पानी है..
खेत सूखा था..
किसान बादलों को..
निहारते निहारते थका..
आई ना फिर भी वर्षा..
सूख गयी फसल ..
मिला ना कोई भी फल..
अब समय के बाद..
वर्षा की बौछार और..
जल की कल कल..
भूख ना मिटा सकेगी..
जब निकल गये..
अनाज आने के पल..
अन्तर मन मिला हो..
हो बहुत ही दोस्ती..
या बहुत नजदीक के रिश्ते..
जिनकी याद में दिल धडके..
दुख के दिनों में..
पास ना फडके ..
मौत द्वार पर खड़ी थी..
परीक्षा की घडी थी..
मिला ना कोई सहारा..
मरते मरते बच गया बेचारा..
पल दो पल के सुख को तरसे..
पीड़ा में आखों से जल बरसे..
अचानक मिली खुशी..
समय निकलने के बाद..
लगती है मौत सी..
ओठों पर आयी हंसी..
लगे नकली बेमानी सी..
मन को छलती है..
गर्त के दिनों में पीए..
अपमान के घूंट..
सच को ले गया झूठ लूट ..
न्याय ना मिला..
जिंदगी पीछे गई छुट..
समय निकलने के बाद..
मिला सम्मान..
अपमान से भी दूभर होता है..
न्याय समय ना मिलना..
जिंदगी के साथ धोखा है..
जवानी में सपने संजोए थे..
कुछ सुख के बीज बोये थे..
सपने टूट बहुत पीछे छुट गये..
सुख के बीज..
बंजर जिंदगी से रूठ गये..
मृत्यु पास में जकडा हूँ..
सुखों की गागर..
छलक रही है सामने..
समय निकालने के बाद..
समुद्र से सुख से भी..
प्यास ना बुझेगी ..
जिंदगी का दिया..
लगा टिमटिमाने ..
अब नहीं है कोई ..
तेल होने के मायने..
समय रहते ही सफ़लता..
और उपलब्धियों का मोल है..
जो हीरे जवाहरात सी होती..
समय निकलने के बाद..
इनका कंकड पत्थर सा मोल है..!!
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कविता की विवेचना:
समय का मोल/Samay ka mol कविता में निर्धारित समय पर कार्य, उपलब्धियों या चाहे के परिणाम और सुख दुख में समय का तकाजा और रिश्तों के महत्व को रेखांकित किया है.
अगर समय पर बीमार को दवाई ना मिले रोगी के मरने के बाद निर्थक है, जो दुख में काम ना आये रिश्ते नाते यार दोस्त वो सुख में साथ हो निर्थक हैं.
समय पर वर्षा ना हो समय निकलने के बाद वर्षा खेत खलिहान और किसान के लिये बेकार है.
बुढ़ापे में मिली सफ़लता व धन वो खुशिया नहीं देता जो समय रहते जवानी में होती.
बहुत जिल्लत अपमान सहने के बाद कितनाभी सम्मान हो बेकार है.
बहुत ज्यादा धन सुख सुविधाए उम्र ढ़लने और बीमारियो से ग्रस्त होने के बाद निर्थक है.
समय रहते मिली सफलता हीरे जवाहरात सी होती है और समय निकलने के बाद कंकड पत्थर और मिट्टी है.
"समय का मोल" कविता समय के बहुमुल्य महत्व को रेखांकित करती है, कर्म का फल समय पर ना मिलने पर वह फल नहीं रह जाता, समय पर न्याय ना मिलना अन्याय के तुल्य है, दुख के समय पर ही रिश्तो नातों दोस्तों यारों की परख होती है.
समय पर मिला जल भी मोती है.
..इति..
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