Monday, November 29, 2021

अपना देश( Apna Desh)


       
Desh Hamara
Apna Desh
Image From:pexels.com


देश हमारा हमे जान से प्यारा..
देश में कितना अधिकार हमारा..
देश कहने को लोकतंत्र है..
जनता का अधिकारिक राज है..

फिर हमे हावी क्यों लगता..
साम्राज्य है..
क्या अभी भी हम गुलामी में..
जी रहे हैं..

घुटी घूटी सी सांसे आंसू पी रहे हैं..
पूंजीवाद क्यों आजादी पे हावी है..
क्या वही राजा भावी है..
आजादी रेत सी मुट्ठी से छूट रही है..

मुगलों अंग्रेजों की गुलामी के बाद..
अब पूंजीवाद की गुलामी..
धिरे धिरे आ रही है..
लोकतंत्र को डसती जा रही है..

पूंजीवाद की गुलामी..
जो लोकतंत्र के नाम पर..
सदियों तक बेरोक टोक चलेगी..
पूंजीवाद के सामने.. 
किसी की भी  एक ना चलेगी..

आम आदमी के सारे रोजगार..
पूंजीपतियों ने थाम लिए..
अब किसानी ,बनियागिरी..
चमयारी , सब्जी  भाजी..
सब ये पूंजीपति ही बेचेंगे..

जो ठेला या हाट लगाते थे ..
हांथ मल मल इनका मुंह देखेंगे..
खबर नबीज दिन रात चहचाहंगे..
इनके ही गुण गान करते पाएंगे..

खबर दुनिया : दुनिया का सबसे..
अमीर सोने के बरतनो में खाता है..
और उनका पानी..
रोज न्यूजीलैंड से आता है..

गरीब भूखे प्यासे ..
इनकी कहानियां सुन सुन..
चकाचौंध होएंगे..
भूख की तड़फ से गरीब बच्चे..
भगवान के सामने रोएंगे..

भगवान ने ही पूंजीपतियों को..
कलयुग के बादशाह का..
वरदान दिया है..
सतयुग आने तक पूंजीवाद को..
जनता को सहना होगा..
इन्हे राजा या बादशाह कहना होगा..

लोकतंत्र , प्रजातंत्र..
के नाम पर जनता को 
बहलाया जाएगा , उसका हक..
वोट के के बहाने खाया जायेगा..

भूखी अधमरी जनता..
सपनो से दिखाए अच्छे दिनों का..
ता उमर इंतजार करेगी..
भूख बीमारी से..
तड़फ तड़फ मरेगी..

सतयुग आने  तक..
यही सिलसिला चलेगा..
भगवान अवतरित होंगे सतयुग में..
तब ही भूखे को..
भरपेट भोजन मिलेगा..
सबको स्थिति है स्वीकार.. 
करो सतयुग आने का इंतजार..!!

_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना:

अपना देश/Apna Desh: कविता में आम लोगों की  अपने देश भारत की आजादी के बारे में राय का वर्णन है।

देश को आजाद हुए 74 वर्ष हो चुके हैं। मगर देश की 80% जनता आज भी आजादी के सुख से वंचित है क्यों?

क्यों आजादी की सुविधाओ की ईमानदारी से गरीब वंचित लोगो तक नहीं पहुंची, क्यों आजादी का सुख 15 से 20% तक लोगों तक ही पहुंचा है।

आजाद देश में कोई भूखा न सोए , कोई बेरोजगार न रहे सबको अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मुफ्त या नॉमिनल खर्च पर मिलें।

इनमे से कुछ भी तो नहीं आम जनता को मिला ना शिक्षा, ना स्वास्थ सुविधा ना रोजगार।

जो स्वाभाविक रोजगार थे उनपर कॉरपोरेट जगत का कब्जा हो गया , सब्जी ,किराना ,कपड़े ,जूते , अनाज, फल फ्रूट, कटलरी ये आम जरूरत की चीजें औधोग पति बेचेंगे तो आम आदमी क्या धंधा करेगा।

जो गरीब आम आदमी के जरूरत की चीजें इस पर भी उद्योग पतियों की नजर पड़ी अचानक ये चीजें आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई , जैसे आटा, दाल,तेल, नारियल,नारियल पानी, सब्जियां , प्याज,नमक , गुड़, पानी आदि।

 पहले गरीब आदमी दाल रोटी खाता था, दाल मंहगी की गई तो प्याज रोटी खाने लगा, प्याज जानबूझ कर मंहगा किया गया तो गरीब नमक रोटी खाने लगा, इसपर भी उद्योगपतियों की नजर गई , इसे भी मांग कर दिया गया तो गरीब बाजरे की रोटी सत्तू पानी के साथ खाने लग गया, पानी को भी बेचा जाने लगा Rs.20 लीटर जो कि कभी सुध घी भी इससे सस्ता आता था।

अब सुना है आम की गुठलियां गरीब खाता है, इस का भी जल्द व्यवसाई करण होगा, जैसे नारियल पानी का हुआ।

शिक्षा एक मात्र साधन था कि अगर मेहनत कर अच्छी शिक्षा गरीब कर ले तो गरीबी से ऊपर आ सकता था, उसका भी व्यवसाई करण करके इतना मंहगा कर दिया कि गरीब क्या मध्यम वर्ग की पहुंच से बाहर हो गई है।

 सारे जीवन की कमाई लगाकर भी अच्छी शिक्षा गरीब की पहुंच के बाहर है, ऐसी ही नीतियां अंग्रेज करते कि भारतीय क्लर्क की नोकरी ज्यादा पढ़ाई ना कर पाए।

 अब नीतियां उससे भी बढ़ कर है कि गरीब पढ़ ही न पाए।

 स्वास्थ सुविधाएं निजी यानी उद्योगपतियों के हाथों में जाने से इतनी महंगी हो गई है कि गरीब बिना इलाज मर जाता है अगर किसी के पास पैसा हुआ भी तो वो हॉस्पिटल का बिल भर कर कंगाल हो जाता है।

मरीज ठीक भी हो गया तो बाद में भुखमरी से मर जाता है और पूरा परिवार घिस कर जीने लगता है।

यह सब बाते हमारे राजनेताओं और सभी बुद्धिजीवियों को पता है। महात्मा गांधी(बापू) का भी यही सपना था कि आजादी का लाभ आखरी गरीब तक पहुंचे ।

गांव गांव में लघु उद्योग लगें, किसानों को उसकी मेहनत का पूरा फल मिले, मजदूर को पूरी मजदूरी मिले, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ सुविधाएं गरीबो के लिए मुफ्त हों, गांव गांव में अच्छे स्कूल और स्वास्थ केंद्र हो ।

 मगर अफसोस बापू का सपना और सभी आजादी के दीवानों का सपना जिन्होने देश को आजाद कराने के लिए कुर्बानियां दी का सपना सपना ही रह गया ।

 आजादी के बाद पुंजवाद की गुलामी चुपचाप आ गई । गरीब से सिर्फ इस देश पर राज करने के लिए वोट लिया जाता है , बदले में उसे कुछ नहीं दिया जाता उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है।

जैसा कि अंग्रेज या मुगल करते थे गरीब से हर हाल में लगान वसूलते थे और उसे बंधुवा मजदूर बनाते थे।

 आजादी मिल मिल गई मगर गरीब को गरीबी से आजादी नहीं मिली , बापू की भी नही सुनी गई , बापू को हर नोट पर छाप दिया।

गरीब बापू की तस्वीर नोट पर देख फूट फूट रोता है, क्यों इस देश का भविष्य सोता है।

शायद कभी चमत्कार हो जाए जब भगवान स्वयं किसी सक्षम शक्तिशाली आदमी के सपने में आए और आदेश दे ।

कि सभी प्राइवेट शिक्षा संस्थानों का राष्ट्रीय करण कर दो, सभी प्राइवेट हॉस्पिटलों का राष्ट्रीय करण कर दो और इन्हे विश्व सतरीय बनाओ, लघु उद्योग और छोटे धंधे आम आदमी और गरीबों के लिए आरक्षित कर दो, कोई भिखारी या भूखा देश में न हो, सबको रोजगार और खाने पीने का अधिकार सुनिचत हो ।सुना है कि मजूदा सरकार कुछ खास करेगी जो आजादी के बाद ना हो सका अभी तो आम जनता को इंतजार है।

तब ही भारत माता खुश होगी कि उसके बच्चे भूखे नहीं हैं और बापू और आजादी के शहीदों की आत्मा भी तृप्त होगी कि उनका कार्य पूर्ण रूप से संपन्न हुआ।

" अपना देश" कविता एक अपने सुंदर देश सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा की परिकल्पना है, भगवान की कृपा से यह जरूर एक दिन सच होगी।

कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
भारत माता की जय!

... इति...
_जे पी एस बी
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Sunday, November 28, 2021

शायरी और यारी( Shayari Aur Yaari)

Shayari Aur Yaari
Shayari Aur Yaari
Image from: pexels.com



तुमसे जबसे मैने यारी की..
तेरे लिए बहुत शायरी की..
याद तुम्हे किया दिन रात..
की प्यार की दिल से बरसात..

तेरे दिल में घर बनाने में..
लग गए मुझे बरसों..
मैने किया लंबा इंतजार..
आखिर दिल की बात..
दिल तक पहुंच गई परसों..

मेरी दर्द भरी आहों ने खोली..
दो दिलों के मिलन की राहें..
नजरें मिली दिल मिले..
फैली तब मिलने को बाहें..
हम गले मिले भर ठंडी आहे..

शकुन मिला जिगर को..
मन को अनोखा चैन मिला..
लगा जिंदगी को जैसे ..
एक और बैचेन मिला..

फुलझरिया फूटी फूल खिले..
रंगबिरंगे इंद्र धनुष ..
चारों ओर बिखरे बिखरे..
जैसे कस रहे हम पर फिकरे..

मस्ती में बीते दिन रात..
जब तक था तुम्हारा साथ..
जिंदगी का सफर सुहाना लगा..
हर पल आया जिंदगी का मजा..

शुक्रिया तुम्हारा..
खुशनुमा साथ निभाने के लिए..
जिंदगी को मेरी ..
तुमने बेशुमार सुहाने पल दिए..

जन्मों जन्म साथ रहेंगे..
हर एक जन्म की बात..
एक दूजे से खूब कहेंगे..
करते है ईश्वर का शुक्रिया..
हमे एक दूजे का साथ दिया..!! 


_ जे पी एस बी 

कविता की विवेचना:

शायरी और यारी/ Shayari Aur Yaari : कविता में दो प्रेमियों की वार्तालाप का वर्णन है।

प्रेमी प्रेमिका का रिश्ता एक यूनिक रिश्ता है, कुछ रिश्ते भगवान के बनाए होते है जिन्हे हम खून के रिश्ते भी कहते हैं , को स्वाभाविक रिश्ते हैं , ये रिश्ते होते ही हैं।

प्रेमी प्रेमिका का रिश्ता एक अनोखा रिश्ता है,जो अंजान इंसानों के बीच बनता है, बाद में इतना खाश हो जाता है कि बाकी रिश्ते दूसरे स्थान पर आ जाते हैं , भले ही कितने भी गहरे हों।

प्रेमी प्रेमिका बाद में पति पत्नी हो जाते हैं, पति पत्नी होने के बाद खाश में से भी खाश हो जाते हैं, कोई और रिश्ता इस रिश्ते के आस पास भी नहीं फटकता।

कविता में इस रिश्ते के बनने की शुरुआत से रिश्ते के गहरे होने तक की प्रक्रिया का दिल की गहरारियो को छू लेने वाला जिक्र है।

शायरी का उदगम और विकाश ही प्रेमी प्रेमिका की भावनाओ को परगट करने के लिए हुआ है, प्रेमी प्रेमिका की बात के बिना शायरी अधूरी है।

कम से कम शब्दो में दिल की गहरी बात व्यवथित ढंग से कह देना और उस बात को समझ लेना ही शायरी है।

"शायरी और यारी" कविता दिल और मन में उठ रही भावनाओ और संवेदना व्यक्त करती है।

कृपया कविता को पढे और शेयर करें।

... इति...
_
_जे पी एस बी
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Tuesday, November 23, 2021

गुनाहों की सजा( Gunahon Ki Saja)

      
Gunahon ki saja
Gunahon ki saja
Image from:pexels.com



ओ कुदरत के गुनाहगारों..
गुनाहों की सजा भुगतनी है तुम्हे..
तू अब आह ना कर..
दर्द हो कितना भी परवाह न कर..

जितना दर्द सहोगे..
गुनाह तुम्हारे कुदरती कम होगें..
जितनी आहें भरोगे..
सजा बढ़ेगी तुम्हारी रुह डरेगी..

तुमने भी तो जानबूझ कर..
मासूमों को अहशय दर्द दिए थे..
कितने ही अमोल जीवन..
तुम्हारी सनक ने बरबाद किए थे..

याद कर लो उन मासूमों का दर्द..
जो उस समय ..
तुम्हे बिल्कुल महसूस नहीं हुआ..
तुमने बिन डर ..
गुनाह किए खुद को खुदा समझ..

ईश्वर के कहर का..
तुझे जरा सा भी डर ना था..
वही दर्द जो तुमने दिया था..
लोट आया है तुम्हारे  पास..

कुदरत के दर्द को..
तुम्हे अकेले ही सहना है..
किसी से भी नही कहना है..
दर्द ही  गुनाहों का गहना है..

जितनी करोगे शिकायत..
दर्द उतना ही और बढ़ेगा..
कर लो गुनाहों का पश्यताप ..
कम होगा तुम्हे थोड़ा संताप..

धिरे धिरे यह सजा..
यही इसी जन्म में खत्म होगी..
अगर कहराओगे ज्यादा..
सजा अगले जन्म तक जाएगी..

वहां जाकर सजा..
कई गुना और बढ़ जाएगी..
अगला जन्म सुधार लो..
गुनाहों की माफी यही मांग लो..

अगर माफी कबुल  हुई..
तो सीधे स्वर्ग जाओगे
तो कर लो तोबा गुनाहों से..
किसी मासूम पर ..
अब कभी सितम ना ढाओगे..!!



_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना:

गुनाहों की सजा/ Gunahon ki saja कविता में कुदरत के कई गुनहगार हैं , जिन्हे इंसान की अदालत सजा न दे पाई।

 वो सजा फिर कुदरत देती है, यही इस पृथ्वी पर, यह कविता उसी सजा का वर्णन करती है। 

यह कुछ गुनाह ऐसे होते हैं जो मानव निर्मित आदलतो के  दायरे में नहीं आते जो बहुत संगीन गुनाह होकर भी गुनाह नही होता।

अगर कुछ गुनाह अदालत के दायरे में आ भी गए तो रसूखदार लोग अक्सर बच ही जाते हैं, अक्सर क्या ज्यादातर बच ही जाते हैं।

ये जो बच जाते हैं सजा से गुनाह करने के बावजूद, फिर 
उनको सजा देने के लिए कुदरत का स्वरचित नियम है।

कुदरत के उस नियम के दायरे में सब बचे गुनहगार आ जाते हैं और किए हुए गुनाहों के अनुसार सजा जरूर पाते हैं।

गुनहगार को पता भी चल पता कि सजा कब चालू हो गई , जब सजा गहराई तक पहुंच जाती है तब एहसास होने लग जाता है कि उसे सजा मिली हुई है।

जब कि गुनाहगार को अपना गुनाह अच्छे से पता रहता है, और कुदरत की सजा भी जैसे ही गुनाह किया ऑटोमैटिक उसी पल शुरू हो जाती है, गुनाहगार को भी पता नही चल पाता कि उसकी सजा शुरू हो चुकी है।

"गुनाहों की सजा" कविता में इस बात का ही वर्णन है कि तुम कितने भी रसूखदार हो या चतुर हो , कुदरत के नियम या कुदरत की नजर से नही बच सकते।
सजा जो मिलकर ही रहती है।

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 ... इति ...
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Wednesday, November 17, 2021

जिंदगी और रिश्ते( Jindgi Aur Riste)

Jindgi Aur Riste
Jindgi Aur Rishte 
Image from : pexels.com



एक बार की जिंदगी ..
एक बार का रिश्ता..
फिर अनंत तक कहां..
जिंदगी में मिलना लिखा..
तब क्यों नही निभता..
एक छोटा सा रिश्ता..

पल दो पल की जिंदगानी..
पानी के बुलबुले सी..
कुछ पलों की हंसी खुशी..
बाकी दुख परेशानियां..
इस जिंदगी में भरी पड़ी..

फिर रिश्तों से कैसा गुस्सा..
कैसा आपस में मिज़ाज..
क्यों रिश्तों से रहते नाराज..
कोई हुआ सफल उठा ऊंचा..
कोई रह गया असफल नीचा..

मगर रिश्ता क्यों हुआ फीका..
माता पिता ,भाई बहिन..
चाची चाचा, मामी मामा..
फूफी फूफा,यार दोस्त..
और भी कई अजीज रिश्ते..
क्यों अब निभ नही पाते..
लगते हैं घिसते घिसते से..

कल को किसने देखा है..
ना हम होंगे ना तुम होगे..
यादें भी सारी मिट जाएंगी..
तब किसके लिए चाहत..
खत्म हो जाएगी रिश्तों की..
सदा के लिए हर आहट..

ईश्वर ने सोच समझ कर..
बनाए होंगे रिश्ते नाते..
अब हम नजर आते नकारते..
गलती से भी रिश्ते को ..
कभी नही लगते पुकारते..

जिंदगी अनंत काल में..
सिर्फ एक बार मिलती है..
थोड़ी सी सुबह दोपहर..
जरा सी जिंदगी की शाम..
अरसो बाद साथ मिलती है..
 
इन मिले हुए सुंदर पलों को..
क्यों ना शान से गुजारा जाए..
अपनी अपनी जिंदगी को..
यादगार रूप से संवारा जाए..
रिश्तों को प्यार से पुकारा जाए..

काम सिर्फ प्यार और खुशियां..
बाटने का रोज किया जाए..
हर रिश्ते को नाम नया दिया जाए..
तोड़ना मरोड़ना छोड़ ..
आओ रिश्तों को जोड़ दिया जाए..

मिली पल दो पल की जिंदगी के..
हर एक पल को भरपूर जिया जाए..
हमारे जाने के बाद भी ..
हमारी यादें सदियों महकती रहें..
जब कभी भी जिक्र ..
हमारे अटूट रिश्तों का किया जाए..
आओ प्यार से अच्छे सरोकार से..
ईश्वर के बनाए रिश्तों को जिया जाए..!! 

_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना: 

जिंदगी और रिश्ते/ Jindgi Aur Rishte कविता:

 आज के तथाकथित आधुनिक समय में पश्चिम के असर से भारत में टूटते रिश्तों का वर्णन उपरोक्त कविता में है।

भारत में रिश्ते बहुत ज्यादा लगाव से निभाने की एक बहुत अच्छी परंपरा रही है।भारतीय रिश्तों में आपसी प्यार और लगाव दिल की गहराईयों से होता है।

भारतीय रिश्ते सुंदर मोतियो की माला की तरह आपसे में गूथे हैं, जिन्हे अलग करने और बिखरने की कोई सोच भी नही सकता।

परंतु इंटरनेट और हमारे लोगों का विदेशाे में आवागम बहुत बढ़ा है, इसका असर हमारे रिश्तों की परंपरा पर भी पड़ रहा है।

" पैसा है तो मैं अकेला जी लूंगा" वाली सोच कुछ लोगों में घर करने लगी , यह इंटरनेट और विदेशी आवागमन का एक आंशिक असर हमारे समाज पर पड़ रहा है।

"प्यार आपस में लगाव है तो सब कुछ है" हमारी भारतीय सोच हमेशा रही है, यह सोच कायम रहनी चाहिए , और इसे कायम रखने के लिए हम सबको मिलकर पुरजोर कोशिश करनी चाहिए।

जिंदगी अनंत काल में सिर्फ एक बार एक सीमित समय के लिए मिलती है और उस जिंदगी के गहने और सांसे रिश्ते हैं।

फिर किसी को पता नही कि जिंदगी का सफर कब किस मोड़ पर खत्म हो जाएगा । फिर यह रिश्ता किसी को नही पता अगली बार अनंत कालों में मिल पाएगा कि नहीं।

आने वाले समय का हम कुछ नही कर सकते, वो ईश्वर के हांथ में है, मगर वर्तमान तो हमारे पास है, रिश्ते हमारे चारो ओर बहुत नजदीक हैं।

आओ इन रिश्तों को गर्मजोशी और प्यार भरी खामोशी से निभाएं। हर रिश्ते को दिल के नजदीक लाए। जिंदगी को भरपूर जी लें।

भगवान ने ये रिश्ते हमारे भले के लिए बनाए हैं, रिश्ते ईश्वर का अनुपम वरदान है, रिश्तों में बसता भगवान है।
इन रिश्तों को और बढ़ाया जाए हर रिश्ते को दिल में बसाया जाए।

" जिंदगी और रिश्ते " कविता हमारे भारतीय रिश्तों की गरिमा का वर्णन करती है, इन रिश्ता को पश्चिम की नजर ना लगे।

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...इति...
_जे पी एस बी
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Wednesday, November 10, 2021

परमात्मा और आत्मा (Parmatma Aur Aatma)

Parmatma Aur Aatma
Parmatma Aur Aatma 
Image from: pexels.com



दर्शन दो मेरे परमात्मा..
तुम ही तो हो मेरी आत्मा..
पास रहकर भी क्यों दूरियां..
यह कैसी हैं मजबूरियां..

यह कैसी है कुदरत..
यह कैसा है करिश्मा..
मैं तुझ में हूं छिपा..
फिर भी खुद को नही दिखा..

ना ही तेरी झलक पाई..
यह कैसा खेल है रघुराई..
आत्मा अपनी ही होकर..
क्यों लगती है सदा पराई..

तेरा ही अंश हूं परमपिता..
फिर भी पिता का साया..
क्यों कभी नही मुझे दिखा..
यह कैसी माया है नही पता..

मंदिर मंदिर गुरुद्वारे..
क्यों तलासता तुझे फिरा..
जब कि तू तो मेरे संग था..
सदा हमेशा मेरे परमपिता..

तन रूपी पिंजरे का दिमाग..
क्या क्या रहता है सोचता..
पिंजरे में तुम हो परमपिता..
दिमाग को रहे हो चला..

दर्शन दो मेरे परमात्मा..
तुम ही तो हो मेरी आत्मा..
जब तू अलग नहीं मुझसे..
मैं ढूंढता फिर रहा हूं किसे..

मैं को मैं ही क्यों तलासता..
समझ से परे है मेरे प्रभु..
तेरी यह चमत्कारिता..
अनंत ब्रमाहण्ड है तू परमात्मा..

अजर अमर है आत्मा..
बस शरीर का होता खात्मा..
दर्शन दो मेरे परमात्मा..
तुम ही तो मेरी आत्मा..!!


_जे पी एस बी  

कविता की विवेचना: 

परमात्मा और आत्मा/ Parmatma Aur Aatma कविता ईश्वर के चमत्कार इंसान की उत्पति और इस इंसान रूपी शरीर को संचालित करने वाले परमात्मा के आत्मा से संबंध का वर्णन है।

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि हर जीव में वह यानी भगवान स्वयं मौजूद हैं, और उनकी इच्छा के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता।

परमात्मा हर वक्त हमारे अंग संग हैं और हम मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे गिरजा घर में उसे तलासते फिर रहे हैं, धर्म के नाम पर लड़ मर रहे हैं।

क्यों कभी आपने स्वयं के अंदर झांक कर नही देखा और ना ही परमात्मा को शिद्दत से याद किया जो कि हमारे अंदर ही मौजूद है हर पल।

परमात्मा है तो ही आत्म है तो ही यह सांस चल रही है और हम जिंदा हैं, एक पल भी परमात्मा साथ छोड़ देगा तो हम एक पल भी जिंदा ना रह पाएंगे।

परमात्मा तो मौत के बाद भी आत्मा का साथ कभी नही छोड़ता, परमात्मा के बिना आत्म कुछ भी नहीं, आत्मा का वजूद ही परमात्मा से है।

आत्मा एक पल भी अनंत काल तक परमात्मा से अलग नहीं हो सकती और जब अलग हुई फिर वहां कुछ भी नही यानी परमात्मा है तब ही आत्मा है वर्ना कुछ भी नही है। 

 परमात्मा है तब ही आत्मा है और आत्मा है तो हम हैं, यानी परमात्मा ने तो हमे एक पल भी अपने से अलग नहीं किया।

यह हमारे शरीर में जो दिमाग भगवान ने दिया है वह ही परमात्मा को भूल बैठा है और हम परमात्मा को जगह जगह ढूंढते फिर रहे हैं ,जब कि दिमाग को भी परमात्मा ही चला रहा है।

कितने नादान है हम हर पल परमात्मा साथ है अनंत काल से और हमे पता नही , हम जगह जगह तलाश रहें हैं , परमात्मा के नाम धर्म बना लिए अलग अलग और लड़ मर रहे हैं ।

परमात्मा एक है और सबके साथ हर पल है तब तो हम जिंदा हैं, इस बात को क्यों समझ नही पाए हम।

"परमात्मा और आत्मा" कविता में परमात्मा को आत्मा से कभी भी अलग नहीं किया जा सकता इस संपूर्ण सत्य का वर्णन किया गया है, परमात्मा बिन आत्मा कुछ नही, आत्मा बगैर मनुष्य का अस्तित्व नहीं।

परमात्मा है तब ही आत्मा है और आत्मा है तब ही मनुष्य का अस्तित्व है, यही परम सत्य है।

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... इति...
_जे पी एस बी
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Monday, November 8, 2021

घोड़े _ऊंट,_हाथी की सवारी ( Ghode Unth Hanthi ki Sawari)

 

Ghode_Unth_Hanthi Ki Sawari
Ghode Ki Sawari
Image from: pexels.com


मंहगा हो गया पेट्रोल डीजल..

महंगी हो गई हैं सब गाड़ी..

अब हमे करनी होगी..

घोड़े,ऊंट,हाथी,खच्चर की सवारी..


ये सारे जानवर मालिक के..

बहुत ज्यादा वफादार हैं..

सभी सिर्फ घांस खाकर भी..

सेवा  करने को सदा तैयार हैं..


मार खाकर भी कभी ..

फर्ज से मुंह नही मोड़ते..

अपनी वफादारी की मिशाल..

हर जगह जाते है छोड़ते..


महाराणा प्रताप के घोड़े..

"चेतक" ने अपनी जान वारी थी..

उसे बहुत ही ज्यादा प्रिय अपने ..

मालिक की अपने पर सवारी थी..


शिवाजी महाराज, रानी लक्ष्मीबाई..

इनका साथ भी तो ..

बहादुर घोड़ों ने ही दिया था..

बदले में कुछ नही लिया था.. 


हम अगर मोटर साइकिल ,कार..

कभी भी ना अपनाते..

प्रदूषण भी ना होता..

पेट्रोल डीजल के दाम भी ना बढ़ पाते..


क्या घोड़े ऊंट हाथी ..

की सवारी वापिस आने वाली है..

या मंहगाई के कारण ..

यह सरकार जाने वाली है..


सरकार जाने से कुछ ना कुछ तो..

मिलेगी जनता को निजात..

होगी कोई तो अच्छी बात..

नई सरकार आएगी जब..

शायद लाए कोई अच्छी सौगात..!! 


_जे पी एस बी  


कविता की विवेचना: 


घोड़े_ ऊंट_हाथी की सवारी/ Ghode_Unth_Hanthi ki Sawari कविता _ हाथी , घोड़े , ऊंट , खच्चर ,तांगा इन सब की याद दिलाती है।

याद आने का कारण है बिन लगाम पेट्रोल डीजल के बढ़ते दाम ,जिसके कारण दूसरी वस्तुओ के मूल्य भी बेहिसाब बढ़ते जा रहे हैं। इतनी मंहगाई ने आम जनता की कमर तोड़ दी है।

सरकार शायद मंहगाई रुपी बॉम्ब के फलीते को आग लगाकर भूल गई है, यह महंगाई बॉम्ब बहुत धमाके के साथ फूटेगा। 

लोगों को गाडियां चलानी बंद करनी होगी और सालों पुरानी परिवहन प्रणाली जानवरों की सवारी पर वापिस लौटना होगा ।

इसके अलावा अब कोई चारा भी नहीं है,सरकार तो  मंहगाई कम नहीं करने वाली, ना उसे आम आदमी की कोई फिक्र है। 

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... इति....

जे पी एस बी 

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