ईश्वर ने इंसान से कहा..
और क्या चाहिए सबूत..
मेरे होने का..
कण कण में ..
हर क्षण में..
हर जीव पौधे..
पर्वत..
जमीन आकाश..
अंधेरा प्रकाश..
समुंदर हवा पानी..
पवन दीवानी..
आंधी तूफान..
बर्फ के गोले..
बरसते ओले में..
सुनसान शून्य में..
संगीत की धुन में..
शोरगुल हंगामे में..
अंधेरे उजाले में..
हर दिलकश नजारे में..
हर जगह हूं मैं..
और क्या चाहिए..
सबूत मेरे होने का..
तुम जलाते हो ..
आग..
मैं परगत होता हूं..
तुम बजाते हो..
घंटी शंख..
मैं बज उठता हूं..
मैं बारिश के रूप में..
आता हूं..
मैं प्रकाश फैलता हूं..
कभी चांद..
कभी सूरज हो जाता हूं..
मैं गुरुत्वाकर्षण हूं..
मैं तेरा और चीजों का ..
वजन हूं..
मैं ही बिजली बन..
आता हूं..
तुम्हारे टीवी फ्रिज पंखे..
मोटर मशीनें..
चलाता हूं..
तुम मेरी ही तरंगों पर..
फोन मोबाइल रेडियो..
सुनते हो..
तुम जिसे विज्ञान कहते हो..
वोह मैं ही तो हूं..
तुम जिसे ज्ञान कहते हो..
वोह बुद्धि ..
मैं ही तो हूं..
तुम जो बोलते सुनते ..
देखते सोचते हो ..
सब मैं ही तो हूं..
तुम जो जीते मरते हो..
वो मैं ही तो हूं..
मैं कभी ..
एक क्षण भी..
अलग नही हूं तुमसे..
ध्यान लगाओ..
महसूस करो मुझे..
मन से..
तुम जो मुझे ढूढते हो..
जगह जगह..
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे..
मैं तो हूं..
तेरे बहुत पास..
तेरे दिल के द्वारे..
मैं तो सर्व व्याप्त हूं..
सब को प्राप्त हूं..
समझो जानो..
मुझे पहचानो..
समझने के लिए..
मैने ही दी ..
तुम्हे बुद्धि..
पहचानो और..
कर लो अपनी आत्मा की..
सुधी..
तुम्हारी याददस्त ..
भूल भुलेया..
मैं ही तो हूं..
मैं अनंत हूं..
मैं भगवंत हूं..
मैं हर जगह व्याप्त हु..
मैं हर जीव पौधे वस्तु..
को प्राप्त हूं..
मेरे बारे में जानने ..
को अनंत काल लगेंगे..
तब भी जान ना पाओगे..
खुद को पहचानो..
तब ही मुझे पाओगे..
मैं हूं बहुत सरल..
तुम में समाया..
तब भी तुम्हे समझ ना आया..
अब मुझे पहचान लो..
जो तुम देख, सुन ,बोल ,समझ..
रहे हो..
उसे ही "मैं" मान लो..!!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
कण कण में भगवान/ kan kan main Bhagvan कविता में भगवान की व्यापता को वर्णित किया गाया है।
भगवान कहां नही है , हर जगह तो हमे भगवान के दर्शन होते हैं, जिसे हम विज्ञान कहते हैं वोह भगवान ही तो है।
पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण होना , चांद सितारे सूरज का होना और निश्चित समय पर अपने कार्यों को करना भगवान ही तो है।
एक ही सूर्य पूरी पृथ्वी को प्रकाश के साथ तापमान भी नियंत्रित करता है। भगवान ही तो है,अनंत आकाश अनगिनत प्रकाश गंगाएं भगवान ही तो है।
तरह तरह के जीव जंतु पौधे फल फ्रूट अनाज फलों में विभिन्न स्वाद रस भगवान ही तो है।
हम सुनते देखते समझते हैं यह सब भगवान ही तो है, जरूरत होने पर अग्नि परगट होती है हवा परगत होती है बरसात बर्फ आसमान से बरसती है यह सब भगवान ही तो है ।
हम विज्ञान कहते हैं विज्ञान स्वयं में भगवान ही है।
हम में बुद्धि सोचने समझने की शक्ति निहित है भगवान ही तो है।
भगवान एक पल भी साथ छोड़ दे तो हमारी सांस दिल की धड़कने दिमाग सब उसी क्षण बंद हो जाएंगे।
उसके बाद भी भगवान के अनुसार किसी और युग और दूसरी पृथ्वीयो की अनंत यात्रा प्रारंभ हो कर अनंत काल तक चलती रहती है, भगवान ही तो है।
जिसका हमे ज्ञान भी नही होता , भगवान ने जिस सीमा तक ठीक समझा हमे ज्ञान और विज्ञान दिया , इसे हम संभाल पाए तो शायद और देगा।
हर पल क्षण हम भगवान पर ही निर्भर हैं उनके बिना कोई भी कुछ भी नहीं है।
" कण कण में भगवान" कविता में भगवान का वर्णन नही किया जा सकता अगर हम कई युग लगा दे तब भी , भगवान का वर्णन भगवान खुद ही कर सकते हैं ।
उनके सिवा कोई भी नहीं, श्री कृष्ण भगवान भगवत गीता में अपनी व्यापता कण कण में हर जीव में उनकी उपस्थि बता गए हैं सर्वव्याप्त प्रभु सबको प्राप्त हैं।
हे ईश्वर इस संसार और ब्रम्हांड पर अपनी असीम कृपा सदेव बनाए रखें हमे एक पल भी अपनी शरण और ओट से अलग ना करें।
जय श्री कृष्ण ! जय श्री राम ! ओम नमः शिवाय!
कृपया कविता को पढे और शेयर करें।
..इति..
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
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