Sunday, July 24, 2022

कुदरत की माया (Kudrat ki maya)

               
Kudarat ki maya
Kudarat ki maya 
Image from:pexels.com 

अद्भुत है कुदरत की माया..
बुढ़ापे तक आते आते..
पलट देती है इंसान की काया..
इंसान का यौवन रूप रंग..
सब होता है धीरे-धीरे लोप..

इंसान को कुदरत ने..
इतना कुरूप असहाय और..
कमजोर करना है ..
जब तक इंसान..
खुद ना कह दे कि..
मुझे अब मरना है..

इंसान की इक्षा से ही..
जाते हैं उसके प्राण..
तब भी क्यों रहता है..
इंसान अपने यौवन में..
होने वाले हस्र से अनजान..

जवानी में इंसान भरता है..
ऊंची ऊंची उड़ान..
जवानी का रहता है..
भरपूर उफान..
अहम सर चढ बोलता है..
इंसान बार बार अपने..
ईमान से डोळता है..

जुबान नहीं रहती काबू..
घमंड अहं की आती है..
उसके बोलो से बदबू..
अपने रूप यौवन पर..
रहता है नाज़..
अपने अहम भरे व्यवहार से..
करता है अपनों को नाराज़..

होता होगा उस समय..
इंसान को अमर्त्य का..
एहसास..
चिरंजीव रहेगा वह सदा..
मौत ना आएगी कभी भी..
उसके आस पास..

मगर यह अटल सत्य है..
कि जो पैदा हुआ..
मरेगा भी जरूर..
फिर इंसान को..
किस बात का है गरूर..

धन दौलत भौतिक..
सुख सुविधाएं..
यही धरती पर जाएंगी छुट..
ना तू कुछ लेकर आया था..
ना ही कुछ लेकर जायेगा..
तेरा बांटा प्यार..
यहां यादों में रह जायेगा..
और रह जायेंगे याद..
तेरे किए अच्छे कर्म ..

अगर तू बुरा इंसान..
रहा होगा ,अत्याचारी व्यभिचारी..
तो तेरी यादों को..
मिटाया जायेगा जूतियों से ..
कूट कूट..
जो बोया था तुमने..
वही पाओगे..
सजा से तुम ना पाओगे छूट ..
किये कर्मों की सज़ा..
इसी जन्म में पाओगे..

बुढ़ापे में अपने किये..
बुरे कर्मो पर पस्तायोगे ..
याद रखो सदा..
कुदरत की माया..
जो कभी इंसान..
समझ नहीं पाया..
इंसान को जो बक्शा..
कुदरत ने, कृतज्ञता से..
उसे याद रखो सदा..
और कर्म करो सदा अच्छे..
एकमेव अतुल्य शक्ति है..
एक ही ईश्वर..
सब इंसान हैं..
उस एक ईश्वर के बच्चे..!!

_Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

कुदरत की माया/Kudrat ki maya कविता कुदरत की अद्भुत शक्तियों को इंगित करती है.

कुदरत ने पृथ्वी, आकाश, चांद, सितारे ,सूर्य बनाया और रची सृष्टि और उस सृष्टि में अन्य जीवों के साथ इंसान भी बनाया. 
इंसान को कई शक्तियां दी और दिया दिमाग. 

इंसान अहम में आकर यह भूल जाता है कि ईश्वर ने जो दिया है  वह सब रूप,  यौवन, शक्ति सब  एक दिन इंसान से छिन् जाना है. 

इस सबका एहसास उसे बुढ़ापे में आकर होता है, तब इंसान रोता है, पस्तावा करता है मगर उसने जो कर्म अहम आकर किये थे उन सबका हिसाब इसी जन्म में देना है.और  बुरे किये हुये कर्मों की सज़ा यहीं भुगतनी है. 

"कुदरत की माया " कविता कुदरत की माया को रेखांकित करती है, कैसे सुंदर इंसान  धीरे धीरे बदसूरत जीर्ण शीर्ण हो जाता है और इंसान खुद कुदरत से मौत मागता है, जो कि जवानी में खुद को अमर मान रहा था.
..इति ..

कृपया कविता को पढे और शेयर करें . 

_Jpsb blog
 jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved. 

Saturday, July 16, 2022

आखिरी ईच्छा (Aakhari Ichha)

             
Aakhari Iccha
Aakhari Iccha 
Image from:pexels.com 

जिन्होंने भगवान..
साक्षात देखे होंगें..
कितने अच्छे उनकी..
जिंदगी के लेखे होंगें..
ईश ने आत्मसात..
किया होगा..
स्थान बैकुंठ में भी..
दिया होगा..

लगाई होगी भक्त ने..
आनंद के अथाह..
सागर में डुबकी..
मिले होंगे ज्ञान के..
अमूल्य मोती..
जल गई होगी..
दिमाग में ज्ञान की..
दिव्या ज्योति..

भगवान से हुआ होगा..
साक्षात्कार..
विभिन्न विषयों पर..
वार्तालाप ..
क्या दिव्य नज़ारा होगा..
सबने अपने भाग्य को..
संवारा होगा..

फिर कब अवतरित होगे..
ईश ,इस पृथ्वी पर..
हमारी भी दिव्य दर्शन की..
अभिलाषा है..
हमने समय इसी इंतजार में..
गुजारा है..
बाट जोह रहें हैं..
हम हर पल..
हमारी ईश दर्शन की..
कामना पूर्ण हो..
आने वाले कल..

क्या हम उस..
दिव्य रूप को..
निहार पायेंगे..
या रूप की चकाचौंध में..
खो जाएंगे.
होंगे संपूर्ण ब्रह्मांड के..
अलौकिक दर्शन..
हमारा होगा ईश को..
संपूर्ण समर्पण..
दिव्य ज्ञान की..
ज्योति जल जायेगी..
जन्म मरण से..
मुक्ति मिल जायेगी..

ईश मिलन से..
हमारी किस्मत खुल जायेगी..
अब कोई दुख तकलीफ..
और किसी की..
याद ना सताएगी..
हो जाएंगे हम संपूर्ण..
फिर ना बनेंगे..
कभी भी भ्रूण..
खत्म होगा..
जिंदगी से मौत में..
आना जाना..
हम हो जाएंगे..
बैकुंठ र-वाना..

होगा हर पल..
ईश दर्शन का परमानंद..
हर पल बितेगा स्वच्छंद ..
आनंद विभोर हो..
नाचेंगे झूमेगे गाएंगे..
जब ईश को..
सामने पायेंगे..

ईश से करेंगे हम कामना..
अब ना हो..
दुख तकलीफों से सामना..
अब कभी हमें..
अपने से दूर ना करना..
हमेशा बनाये रखें..
अपना हिस्सा..
यही है हमारी..
आखिरी इच्छा..!!

_Jpsb blog 

कविता की विवेचना:

आखिरी इच्छा/Aakhari Iccha कविता ईश्वर भगवान के दर्शन की कामना जो हर भगत के दिल में होतीं है उस अभिलाषा को पूर्ण होने की परिकल्पना यह कविता करती है. 

भगवान ईश्वर जिज्ञासा का विषय है हर इंसान के लिये हर कोई उस दिव्य स्वरूप और शक्ति के दर्शन करना चाहता है. 

किसी इंसान  ने  कभी भगवान  के स्वरुप के दर्शन नहीं किये जिस किसी ने अगर किये हैं किसी को बताया नहीं. 

सब ने अपनी कल्पना अनुसार अपने अपने भगवान  बना लिये 
धर्म बना लिये और उसे सत्य मान लिया और अपनी अपनी कल्पना को सर्व श्रेष्ठ बताया.

अगं किसी ने भी उस परिकल्पना पर संशय किया या नकारा तो विरोध स्वरुप विरोधी की जान ले ली गई. 

" आखरी ईच्छा " कविता ईश्वर के दर्शन की तीव्र अभिलाषा जतलाती है, और अपनी परिकल्पना  के ईश्वर को पाती है, ईश्वर का आभास है सबके पास, परिकल्पना भिन्न हो सकती है, सबके मन में ईश्वर के प्रति अपार निष्ठा और भक्ति है. 

..इति..

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

_Jpsb blog
 jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai. 
Copyright of poem is reserved. 





Sunday, July 10, 2022

समय का मोल (Samay ka mol)

                
SAMAY KA MOL
SAMAY KA MOL 
Image from:pexels.com 

समय पर मिली सफलता..
और सुख उपलब्धियों का..
मोल आनंद कुछ और ही है..
समय बितने के बाद..
मिली सफलता और सुख में..
खुशी ढूँढे नहीं मिलती..
अनमने से संतुष्ट होते हैं..
वो धमक और चहक..
नहीं कही भी दिखती..

सफलतम होने पर..
अपने दिल के पास के..
लोग बहुत याद आते हैं..
जो छोड़ गये दुख में..
ना लौटने के लिए ..
आंखे उनकी यादों को..
नीर बन भिगोती हैं..
यादों का तुफान थम जाता है..
मगर आत्मा रोती है ..

पपीहा बूँद बूँद को तरसा ..
आई ना समय पर वर्षा..
पपीहा मर गया प्यासा..
जो पूरी ना हो कैसी आशा..
जो बूंद वर्षा की उसके..
जीवन के लिए थी मोती ..
अब वो सिर्फ खारा पानी है..

खेत सूखा था..
किसान बादलों को..
निहारते निहारते थका..
आई ना फिर भी वर्षा..
सूख गयी फसल ..
मिला ना कोई भी फल..
अब समय के बाद..
वर्षा की बौछार और..
जल की कल कल..
भूख ना मिटा सकेगी..
जब निकल गये..
अनाज आने के पल..

अन्तर मन मिला हो..
हो बहुत ही दोस्ती..
या बहुत नजदीक के रिश्ते..
जिनकी याद में दिल धडके..
दुख के दिनों में..
पास ना फडके ..
मौत द्वार पर खड़ी थी..
परीक्षा की घडी थी..
मिला ना कोई सहारा..
मरते मरते बच गया बेचारा..

पल दो पल के सुख को तरसे..
पीड़ा में आखों से जल बरसे..
अचानक मिली खुशी..
समय निकलने के बाद..
लगती है मौत सी..
ओठों पर आयी हंसी..
लगे नकली बेमानी सी..
मन को छलती है..

गर्त के दिनों में पीए..
अपमान के घूंट..
सच को ले गया झूठ लूट ..
न्याय ना मिला..
जिंदगी पीछे गई छुट..
समय निकलने के बाद..
मिला सम्मान..
अपमान से भी दूभर होता है..
न्याय समय ना मिलना..
जिंदगी के साथ धोखा है..

जवानी में सपने संजोए थे..
कुछ सुख के बीज बोये थे..
सपने टूट बहुत पीछे छुट गये..
सुख के बीज..
बंजर जिंदगी से रूठ गये..
मृत्यु पास में जकडा हूँ..
सुखों की गागर..
छलक रही है सामने..

समय निकालने के बाद..
समुद्र से सुख से भी..
प्यास ना बुझेगी ..
जिंदगी का दिया..
लगा टिमटिमाने ..
अब नहीं है कोई ..
तेल होने के मायने..
समय रहते ही सफ़लता..
और उपलब्धियों का मोल है..
जो हीरे जवाहरात सी होती..
समय निकलने के बाद..
इनका कंकड पत्थर सा मोल है..!!

_jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

समय का मोल/Samay ka mol कविता में निर्धारित समय पर कार्य, उपलब्धियों या चाहे के परिणाम और सुख दुख में समय का तकाजा और रिश्तों के महत्व को रेखांकित किया है. 

अगर समय पर बीमार को दवाई ना मिले रोगी के मरने के बाद निर्थक है, जो दुख में काम ना आये रिश्ते नाते यार दोस्त वो सुख में साथ हो निर्थक हैं. 

समय पर वर्षा ना हो समय निकलने के बाद वर्षा खेत खलिहान और किसान के लिये बेकार है. 

बुढ़ापे में मिली सफ़लता व धन वो खुशिया नहीं देता जो समय रहते जवानी में होती.

बहुत जिल्लत अपमान सहने के बाद कितनाभी सम्मान हो बेकार है.

बहुत ज्यादा धन सुख सुविधाए उम्र ढ़लने और बीमारियो से ग्रस्त होने के बाद निर्थक है. 

समय रहते मिली सफलता हीरे जवाहरात सी होती है और समय निकलने के बाद कंकड पत्थर और मिट्टी है. 

"समय का मोल" कविता समय के बहुमुल्य महत्व को रेखांकित करती है, कर्म का फल समय पर ना मिलने पर वह फल नहीं रह जाता, समय पर न्याय ना मिलना अन्याय के तुल्य है, दुख  के समय पर ही रिश्तो नातों दोस्तों यारों की परख होती है. 
समय पर मिला जल भी मोती है.

..इति..
_jpsb blog
 jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai 
Copy right of poem is reserved. 






Saturday, July 9, 2022

ईश्वर से नजदीकियां (Ishwar se nazdikiya)

               
Ishwar se najdikiya
Ishwar se najdikiya 
Image from:pexels.com 

मेरे प्रभु मेरे हजूर..
मेरी सांसे चला रहें हैं..
मेरे दिल को निरंतर..
धडका रहें हैं..
मेरे रोम रोम को..
अपने होने का..
अह्सास करा रहें हैं..

मेरी ईश्वर से नजदीकियां..
कितना है..
ईश्वर का एहसास..
और भक्ति भावनां की..
मेरे अंदर बारीकियाँ ..
मेरे प्रभु मेरे अन्दर..
हर पल हैं मौजूद..
वो साथ हैं हमेशा..
तब ही तो है मेरा वज़ूद..

मगर साथ होते हुये भी..
क्यो कभी उनसे..
मेरी बात नहीं होती..
प्रभु के दर्शन की..
बहुत ज्यादा है कामना..
प्रभु बताएं..
कब होगा आपके..
दिव्य स्वरूप का सामना..

हर क्षण कण कण में..
आप व्याप्त हो..
हर जीव को प्राप्त हो..
आपकी माया की..
कोई थाह नहीं..
क्या आपसे मिलने की..
कोई राह नहीं..
आपका कल कल..
हवा नदी सा प्रवाह..
महसूस होता हर कहीं..

आप सबके पास हो..
यहीं कहीं आस पास हो..
तब भी आपकी..
मंदिर मस्जिद में..   
तलाश हो ..
क्या प्रभु लगता नहीं..
यह आपकों अजीब..
जब कि आप हो..
दिलों के बहुत करीब..
निरंतर जारी है.. 
आपकी तलाश के..
बहुआयामी सिलसिले..
तब भी आप क्यों..
इंसान को नहीं मिले..

इंसान आपस में लड ..
क्यों मिटा रहा..
अपने शिकवे गिले..
फिर इंसान का दावा..
कि आप मस्जिद में हो..
कोई कहता है कि..
आप मंदिर में हो..
मगर मुझे क्यों होता है..
आभास कि आप..
सबके दिलों में..
करते हैं वास..
बस करना होगा विश्वास..
मुझे है एहसास..
कि आप ही हो..
मेरे दिल की धडकन..
और मेरी साँस..

इंसान क्यों नहीं समझ पाया..
आपकी माया और..
आपके होने के राज..
आप एक ही वक़्त में..
हर क्षण हर जगह हो मौजूद..
आप हो अकाल स्वरूप..
असंख्य शक्तियों ..
और ब्रह्मांड के स्वामी..
आपकी शख्सियत है..
बहू आयामी..

हे मेरे प्रभु बैकुंठ धामी ..
मुझे खुशी और आश्चर्य है..
कि आप द्वारा बनाये ..
असंख्य जीवों में..
मैं भी हूँ एक..
मैं जानता हूं..
कि आप हो सदा मेरे पास..
फिर भी क्यों मन है उदास..

मैं आपना अलग वज़ूद..
कभी नही चाहता..
मैं क्यों नहीं..
आपके स्वरूप में समाता..
आपके वज़ूद से ही..
मेरी तकदीर है..
मेरे रोम रोम में..
सिर्फ आपकी तस्वीर है..
मैं आप से सिर्फ इतना..
कहना चाहता हूँ..
प्रर्थना है, कि मैं चिरस्थाई..
आपकी तस्वीर में रहना चाहता हूँ..!!

_Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

ईश्वर से नजदीकियां/Ishwar se najdikiya कविता लेखक द्वारा ईश्वर की अनुभूति का संक्षिप्त विवरण है. 

ईश्वर एक है उसके स्वरूप अनेक है, वो कण कण में व्याप्त है, यह सब इंसानों को है पता फिर भी ईश्वर को इंसान ने अनेक धर्म बना उसे अपने अनुसार अनुवादित किया और अपने बनायी ईश्वर के प्रति धारणा को अपने ढंग से प्रचारित किया. 

किसी ने उन्हें निराकार माना, किसी ने अकाल बताया, किसी ने अवतार माना अपने अनुसार उनका स्वरूप बनाया.

ईश्वर भगवान अल्लाह God जिस भी नाम से संबोधित करो या किसी भी स्वरूप में उपासना करो उपासना उस आलौकिक शक्ति की होती है, जिन्हें हम ईश्वर कहते हैं .

और वो सभी जीवों के दिलों में रहते हैं, वो हैं तो हम आप और जीव हैं प्रकृति है.

किसी इंसान ने उनको कभी नहीं देखा. जिन पीर पैग़मबरों अवतारों ने देखा उसका वर्णन करने के लिये शब्द ही नहीं बने किसी भी भाषा में. 

अवतारों ने इंसान से कहा तुम भी सच्चे मन से उन्हें याद करो अपने मन से सभी अवगुण उतार फेंको पवित्र सुद्ध बन जाओ और तुम भी ईश्वर को पाओ. 

मगर समझते हुए भी कुछ लोग ईश्वर खुदा पर सिर्फ अपना हक जताते हैं उसी ईश्वर को दूसरे स्वरूप में मानने वालों को सताते हैं और कई बार अति उत्साह में जान से मार कर फ़क्र मनाते हैं.

कि जैसे ईश्वर पर बहुत एहसान किया और ईश्वर के वज़ूद की रक्षा की है. 

जिस ईश्वर ने मरने और मारने वाले दोनों को बनाया भला उस ईश्वर के प्रति वफ़ादारी उसी ईश्वर के प्रिय को सता कर मार कर कैसे हो सकती है.

इतिहास गवाह है कुछ मुगल शासकों ने उस ईश्वर अल्लाह के नाम दुसरे स्वरूप में उसी ईश्वर को मानने वाले को बुरी मौत मारा और फ़क्र किया जैसे उनने ईश्वर पर एहसास किया या वफादारी की हो. 

सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी,श्री गुरु अर्जन देव जी की शहादत इसका उदाहरण हैं. 

क्या ईश्वर, खुदा ऐसी हत्या करने पर खुश हो सकता है, सबको पता है कि नहीं.

फिर भी यह खुमार जारी है इसे बिमार मानसिकता कहा जाये, राजनीति कहा जाये या ईश्वर के प्रति अज्ञान कहा जाये.

एक बार मान लिया जाये कोई धर्म विशेष कहता है कि उसका मत सही है ईश्वर एक है उसने ही सब कुछ बनाया है कायनात पृथ्वी सारे इंसान और जीव पेड़ पौधे तो फिर अपने ही खुदा या ईश्वर द्वारा बनाये इंसानों और जीवों को क्यों मार रहे हो यह विचार गंभीरता से करना चाहिये.

उसी एक ईश्वर ने ही तो सारे धर्म बनाये अगर गलत होता तो ईश्वर यह सब ना बनाता, क्या ईश्वर गलत हो सकता जो इंसान जो कभी ईश्वर से नहीं मिला उसका वज़ूद ईश्वर के सामने कुछ  भी नहीं वो ईश्वर के बनाये इंसान को मार कर खुद को सही कैसे सिद्ध कर सकता है.

क्या भगवान ने उस इंसान को गलत बनाया था, क्या इंसान खुद को ईश्वर से बड़ा सिद्ध करना चाहता है जो ईश्वर की बनाई प्रकृती को नष्ट करना चाहता है. 

"ईश्वर से नजदीकियां "कविता इंसान द्वारा निर्मित धर्मान्धता और उस धर्मान्धता की आड़ में ईश्वर के बनाये संसार में अत्याचार करना और स्वयं को सही सिद्ध करना और ईश्वर का परम हितेसी बताना जब कि उसने कभी ईश्वर को नहीं देखा.

ईश्वर की खूबसूरत रचना को तहस नहस करने वाला ईश्वर का हितेसी होगा कि ईश्वर का गुनाहगार यह गंभीरता से सोचने का विषय है.

और इसे धर्म धीरूओ को सोचना होगा. आश्चर्य है कि जो भी धर्म बने शांति और विश्व की अच्छाई के लिए बने तो ये विश्व को बुरा करने और ईश्वर की सुन्दर संरचना को नष्ट करने पर क्यों हैं तुले.

और उसपे दंभ कि वे सर्वश्रेष्ठ हैं और ईश्वर पर उपकार कर रहे हैं.

ईश्वर इंसान को और ज्ञान दे और जो गुनाह वो ईश्वर के बताये रास्ते के विपरित कर रहें हैं उसका एहसास दे, ईश्वर को जो इनके गुनाहों से पीड़ा होती है इन्हें बता दे. 

गुनाह गार आपके दर्शन के योग्य तो नहीं, इन्हें किसी माध्यम से महसूस कराये कि ये कितना बड़ा गुनाह कर रहे हैं और इनको इसकी सज़ा कितनी भयावह मिलेगी. 

..इति..

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

_jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved. 





Wednesday, July 6, 2022

जिओ और जीने दो (Jio aur jine do)

               
Jio aur jine do
Jio aur jine do
Image from:pexels.com 

हे नफ़रतों के सौदागरों..
थोडा सा प्यार..
अपने दिल में पाल लो..
खुद जिओ और..
सबको जीने दो..
यही है जिंदगी का रास्ता..
तुम्हें तुम्हारे ईश्वर..
और खुदा का वास्ता..

ईश्वर अल्लाह के नाम से..
दंगे फसाद ना करो..
यह देश है तुम्हारा..
इसे सम्भाल लो..

उसी एक ईश्वर ने..
तुम सबको बनाया..
चाहे नाम के आगे लाल ..
और चाहे  खान हो लगाया..
उस ईश्वर अल्लाह के..
तुम दोनों ही लाल हो..
ईश्वर अल्लाह ने तुम्हें..
बिन भेद भाव अपनाया..

फिर उस अल्लाह ईश्वर के..
बन्दे को, अपने ही भाई को..
क्यों मौत की नींद सुलाया..
क्यों ईश्वर का प्रेम का..
संदेश तुमने है भुलाया..

उसी ईश्वर अल्लाह ने..
तरह तरह के फूल खिलाये..
फ़ूलों की तरह ही..
सब धर्म बनाये..
हिन्दू मुस्लीम सिख ईसाई..
जैन बुद्ध कहलाये..

एक खूबसूरत दुनिया बनाई..
इस दुनिया में..
तुम्हारे लिये हर चीज़..
उपलब्ध करायी ..
किसी भी चीज़ पर..
कहीं धर्म का नाम ना लिखा..
फिर तुम्हें इंसानो में ही..
मजहब ,धर्म में..
हिन्दू मुस्लिम क्यों दिखा ..

तुम्हें ईश्वर की बनाई..
यह दुनिया क्यों पसंद ना आई..
क्यों तुमने..
इस दुनिया की खिल्ली उड़ाई..
सुंदर बगीचे को..
नोचा खरोंचा तार तार किया..
क्यों ना ईश्वर का विचार किया..

अपने अपने ईश्वर..
और खुदा पर करों ऐतबार..
चलने दो ईश्वर का संसार..
यह सब तुम्हारा है..
तुम्हारे लिये ही है..
ईश्वर का तोहफा..
तोहफ़े का ना करो अपमान..
ईश्वर अल्लाह और..
उसके बनाये बंदों का ..
करो सम्मान ..

खुद जिओ और औरों को भी..
जीने दो..
यही तो है जिंदगी का रास्ता..
तुम्हें तुम्हारे ईश्वर और 
तुम्हारे खुदा का है वास्ता..!!

_Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

जिओ और जीने दो/Jio aur jine do कविता आज के समय समाज में फैली धर्मान्धता से क्षुब्ध है. 

मेरा अल्लाह तुम्हारा ईश्वर कह कह कर जान बुझ कर किया लडाई झगड़ा.

जिसने इंसान को बनाया उसी इंसान ने अपने बनाने वाले को अपनी सुविधा अनुसार कई भागों में बांटा और फिर उस एक ईश्वर के नाम पर मार काट मचाई, क्यों ईश्वर द्वारा दी बुद्धी काम ना आई. 

सब कुछ उस ईश्वर और अल्लाह ने तो बनाया है, उनकी बनाई चीजों को नष्ट करते क्यों तुम्हें पाप बोध नहीं होता, तुम्हारे अंदर का जमीर क्यों है सोता. 

उस अल्लाह ईश्वर से एक बार पूछ तो लो कि क्या तुम अलग अलग हो या एक ही शक्ति के दो नाम हो, कई बार ईश्वर ने संदेश दिया कि वह एक ही है.

 उसने सारा ब्रह्मांड बनाया है, उस ईश्वर को तुम God कहो अल्लाह कहो या भगवान सब  एक का ही है नाम, तब भी इंसान जैसे सबसे बुद्धीमान जीव को क्यों समझ नहीं आता. 

जिसको तुम मार रहे हो काट रहे हो उसे भी उसी अल्लाह ने बनाया है, तो अपने ही अल्लाह के प्रिय का कत्ल कर क्या अल्लाह का अपमान नहीं और यही कार्य करने वाले हिन्दू क्या ईश्वर का अपमान नहीं कर रहें.

अपने आप से पूछें ऐसा क्यो कर रहें हैं, ईश्वर को हिसाब देना होगा और वहाँ राजनीति नहीं चलेगी सिर्फ सचाई चलेगी और तुम सोच भी नहीं सकते ऐसी सज़ा मिलेगी. 

"जिओ और जीने दो " कविता इंसान की इंसानियत से सवाल है.

कि किसके नाम से यह नफरत ये कत्लेआम कर रहे हो. 

अपनी स्वर्ग सी दुनिया को नरक बनाने का काम, क्यों कर रहे हो. 

क्या अल्लाह या ईश्वर तुम्हारे इस काम से खुश हैं, क्या कभी पूछा है उनसे, अगर नहीं तो एक बार पूछ लो हे इंसानो ईश्वर द्वारा दी गई अकल का इस्तेमाल करो. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

..इति..
Jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved. 




Recent Post

हमारा प्यारा सितारा (Hamara Pyara Sitara)

                        Hamara pyara sitara Image from:pexels.com  शुभ-भव्य ने.. आकाश को गौर से निहारा.. सबसे चमकते सितारे को.. प्यार से पुक...

Popular Posts