Sunday, February 12, 2023

पहचान (Pahchan)

             
Pahchan
Pahchan 
Image from: pexels.com 

खुद को पहले पहचान..
फिर दुनिया को जान..
तेरे अन्दर ही है भगवान..
ईश्वर से कर ले..
जान पहचान ..
अपने आपको भी..
जायेगा तू पहचान..

ईश्वर का कोई..
मजहब धर्म नहीं..
उसने बनाये एक जैसे ..
सब इंसान..
इंसानों ने ही किये..
अलग अलग धर्मों के..
फरमान..
इंसान क्यों समझ बैठा..
खुद को भगवान..

धर्मों की भीड़ में..
भगवान को ना ढूंढ पाओगे..
अपने अन्दर झाकोगे तो..
भगवान को वहाँ पाओगे..
कर लो ईश्वर की आराधना..
यही है तेरी साधना..
कर ले तू ध्यान..
फिर खुद को तू पहचान..

खोज होगी तेरी पूरी..
अगर अपने आप से..
तूने मिटा ली दूरी..
तेरे दिल के उस पार है..
परमात्मा..
जान जायेगी तेरी आत्मा..
मान गुरु का एहसान..
जिसने तेरी खुद से करा दी..
पहचान..

ईश्वर से बढ़ेगी नजदीकियां..
मिलेगा तुझे ब्रह्म ज्ञान..
समझ आयेंगी..
जन्म मरण की बारीकियां..
सामने होंगे सब रिश्ते नाते..
समझ आयेगा..
वो क्या हैं तेरे लिये..
और पहले क्या थे..
किसी से रहेगा ना तू अब.
अनजान..
सबको जायेगा पहचान..!!

Jpsb blog 

कविता की विवेचना:

पहचान/Pahchan कविता इंसान की जन्म मरण की उलझन को समझने और सुलझाने की कोशिश है. 

जन्म लेते ही हमारा एक नाम रख दिया जाता है, एक जात धर्म और और देश से जोड़ दिया जाता है, यह सब इंसान की कृत्रिम पहचान है, असली पहचान तो ईश्वर के पास है. 

पूरी जिंदगी बीत जाती है और इंसान खुद को ही जान पाता तो ईश्वर को क्या जानेगा,ईश्वर को जानने के लिये पहले खुद को पहचाना होगा.

इस इंसानो के संसार में इंसान, इंसानी कृत्रिम धर्मों जात पात ,प्रांत देश आदि कई उलझनों में उलझ कर रह जाता है और जिन्दगी भर उलझा रहता है. और अंत में अपने आप से अनजान ही मर जाता है,

इंसानी जीवन अपने आप को जानने का सुनहरा अवसर है, जो कि इंसानी उलझनों में खो जाता है. 

"पहचान "कविता इंसान के जन्म को भुनाने और खुद को पहचानने  और ईश्वर से  मिलने का सुअवसर है, इस को किसी भी हाल में जाया नहीं होने देना चाहिये, अपने आप को पहचानिए और अंदर बैठे ईश्वर को जानिये. 

..इति..

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

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 jpsb.blogspot.com
 Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved 



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