Sunday, October 23, 2022

आत्मा की आवाज़ (Aatma ki awaj)

          
Aatma ki awaj
Aatma ki awaj 
Image from:pexels.com 


सुनो आत्मा की आवाज़..
अपने दिव्य ज्ञान का ..
करो आगाज..
ना इसरो ,ना नासा..
आत्मा को आती है..
ब्रह्मांड की हर भाषा..

जहाँ लगते हैं..
करोड़ों प्रकाश वर्ष जाने में..
आत्मा पहुंचती है वहां..
चुटकी बजाने में..
पृथ्वी जैसे जीवन की तलाश..
पूरी ना हो सकी ..
जो आज तक..
आत्मा को है उस जीवन का..
पूर्ण है आभास..

करोड़ों और ग्रहो पर जीवन है ..
आत्मा को सब है ज्ञात ..
बस आत्मा को..
इस शरीर की कैद से..
छूटने की है बात ..
छूटते ही शरीर से..
आत्मा जा बसती है..
करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर..
सेकेंडो में..

उस ग्रह का..
रहण सहन भाषा..
सब पल में अपना लेती है..
हम जब तक..
पृथ्वी पर दक्ष क्रिया करने में..
व्यस्त होते हैं..
आत्मा करोडों प्रकाश वर्ष दूर..
किसी ग्रह पर..
अपना जन्म दिन..
मना रही होती है ..

बीती ताई बिसार दे..
आगे की सुद्ध ले..
कहावत को चरितार्थ..
कर रही होती है..
हम रोते हैं जब..
याद कर उन्हें..
वो हमारी नादानी पर..
मुस्कुरा रही होती है..
अपनी आजादी की..
खुशी मना रही होती है..

कई बंधन एक साथ..
छूट जाते हैं..
सीमित दायरा असहाय थी..
दम घुटता था..
अब आजाद सब आसान है..
सामने साक्षात भगवान हैं..

जब इतना कुछ पता है..
तो इंसान ..
मरने से क्यों डरता है..
क्यों आत्मा से जीते जी..
नहीं होती कभी बात..
क्यों आत्मा का..
साथ कभी ना भाता है..
क्यों इंसान का..
अपनी ही आत्मा से..
कटा है नाता ..

क्यों अपनी..
दुख तकलीफों को ..
आत्मा को नहीं बतलाता..
मन्दिर मन्दिर मन्नतें..
मगर स्वयं की..
शक्तिशाली आत्मा को..
क्यों है भुलाता..

सेकेंडो में हर समस्या का..
समाधान है..
आत्मा को वो दिव्य ज्ञान है..
शर्त, कि खुद खुद की..
आत्मा को जानो पहचानो..
तो तुम्हारी..
हर समस्या का हल है..
आत्मा में इतना बल है..

आत्म मंथन करने का..
वक़्त आ गया है..
तुम्हारी हर समस्या का..
हल आ गया है..
तो हे इंसान..
ईश्वर में हो जाओ विलीन..
चरम सुख पाओ..
चारों ओर स्वर्ग ही स्वर्ग है..
उस में बस जाओ..!!

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कविता की विवेचना: 

आत्मा की आवाज़/Aatma ki awaj कविता इंसान की ईश्वर द्वारा प्रदत्त दिव्य शक्तियों की ओर इंगित करती है. 

ईश्वर स्वयं आत्मा स्वरुप में हर इंसान में सारे जीवन मौजूद हैं, मगर इंसान अपने अंदर ध्यान ही देता और बाहरी क्षणिक सुख तलाशाता 
मर जाता है. 

मरने के बाद आत्मा को नजदीक पाता है, जीते जी जिससे मिल ना 
पाया शरीर के मोह माया में वक़्त गवाया .

अब आत्मा चुटकी में ही पूरा ब्रम्हांड दिखाती है, करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर किसी ग्रह में बसाती है .

"आत्मा की आवाज़ " कविता एहसास कराती है, काश आत्म चिंतन किया होता तो बहुत पहिले ही आत्मा से बात हो गई होती, जीवन इतना दुर्दांत नहीं होता, ईश्वर से रहती नजदीकियां, समझ आती बहुत पहले ही इस ब्रम्हांड की बारीकिया .

..इति..

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Tuesday, October 18, 2022

खोया हुआ सितारा (Khoya huwa sitara)

                      
Khoya huwa sitara
Khoya huwa sitara 
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आसमान के करोड़ों..
सितारों में से..
एक मैं भी हूँ..
कभी धुन्ध में खोया सा..
टिमटिमाता रोया सा..

दिख जाता हूँ कभी..
तारों के झुरमुट में..
कभी मिट जाता हूँ..
बादलो, धूल की..
आगोश में खो जाता हूँ..
कभी किसी का..
हो जाता हूँ..

किसने मुझे ढूँढा..
या फिर याद किया..
क्या हूँ मैं..
किसी आंख का तारा..
या अकेला हूँ बेसहारा..

इस नीले अंबर में..
ना किसी की..
खुशी हूँ ,ना किसी का..
ग़म हूँ..
मैं किसी की उम्मीद से..
थोडा कम हूँ..

लगाव, प्यार, यादे..
किसी के वादे..
जैसी भावनाएं..
मुझ से रहती दूर..
ना मैं बहादुर..
ना ही हूँ मजबूर..

मेरी शख्सियत..
कुछ भी नहीं..
पुराने चिराग सा..
खोया पडा हूँ..
सोचता हूँ मैं एक सितारा..
कितना बड़ा हूँ..

समय की गर्त में..
दबा पडा हूँ..
मैं जीवित हूँ..
मगर जैसे मरा पडा हूँ..
मेरा हाल कोई पूछता नहीं..
मैं अपनों से दूर..
खोया हूं कहीं..

मेरी खुद की चमक..
टिमटिमाहत में बदल गई..
ना रही रोशनी बाकी..
जैसे चिराग बुझने पर..
रह जाती है बाती..

मेरे मालिक मेरे ईश्वर की..
कृपा होती है कभी कभी..
तो चमक उठता हूँ..
रोशनी में नहाया सा..
दिखता हूँ खुद को..
अंबर में पराया सा..

तारों के झुरमुट से..
अलग थलग..
कभी रोता हूँ..
कभी हसता हूँ..
मेरी भावनाओं की..
किसी को परवाह नहीं..
मैं किसी की चाह नहीं..

अनंत सालों से..
ऐसे ही निर्थक पडा हूँ..
कई बार जिया..
और कई बार मरा हूँ..
मेरी हस्ती..
मुझ तक ही सीमित..
कुछ नहीं मेरी..
भावनाओं की कीमत 

मेरे होने ना होने सी है..
मेरी हालत..
मगर फिर भी..
मैं इस सृष्टी का..
एक हिस्सा हूँ..
और सितारों से अनजान..
गुमनाम किस्सा हूँ..

हम तारे अनजान..
एक दूजे अलग से..
फिर भी लगे..
जुड़े जुड़े से..
चमक रहें हैं आसमान में..
अन्दर से बुझे बुझे से..

ना हमारा आदि है..
ना अंत है..
सिलसिला यह अनंत है..
ब्रह्मांड में..
हम रसे बसे हैं..
कठिन नियमों में कसे हैं..

मेरा तारे सा..
कोई वज़ूद नहीं..
लगता है मैं मौजूद नहीं..
टिमटिमाना मेरी नियति है..
किसे बताऊ..
क्या मुझ पर बीती है..

यही सृष्टि है..
जो ईश्वर ने बनाई है..
मुझ जैसी कई चीजें..
कुदरत के कैनवास में..
सजाई है..
मैं उस सजावट का..
एक अंश हूँ..

मैं एक खोया सितारा..
कुछ ना होते हुए भी..
तारा समूह का वंश हूँ..
कोई तो चाहे मुझे..
दिल में बसाये मुझे..
उसे मैं मिल जाऊँगा..
चमक से खिल जाऊँगा..!!

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कविता की विवेचना: 

खोया हुआ सितारा/Khoya huwa sitara कविता धरती पर उपेक्षित इंसान की तुलना आसमाँ में तारे से की गई है.

जो अनाम है और तारों के झुंड का हिस्सा हैं. 
अनगिनत उपेक्षित इंसान हमें भी रोज नज़र आते हैं, जिनसे कई नजर बचाते हैं, वो भी इस समाज का हिस्सा हैं.

 जैसे तारों के झुंड में हर तारा तारों के समूह का सदस्य है, मगर निजी रूप से तारा भी अपने आप को उपेक्षित पाता है.

जैसे वह इतने सारे तारों के झुंड में खो गया है. 
उपेक्षा बहुत बड़ा घाव देती है, एक किस्म से जिंदगी का सारा आनंद रस ले लेती है. 

इंशा इंसा से प्यार करे एक दूजे को स्वीकार करे, बुझे हुये दियों में तेल डाल उन्हें प्रज्वलित करने सा काम होगा.

 किसी को जिन्दगी का आनंद मिलेगा किसी को आत्म संतुष्टि सम्मान मिलेगा, जिन्दगी में एक आलोकित शांति और चैन मिलेगा. 

"खोया हुआ सितारा " कविता पृथ्वी पर उपेक्षित सितारों की खोज है जिनमे चमक लानी है, ज़िंदगी में आनंद भरना है उन्हें सुन्दर खिले फूलों सा करना है, खोया तारा खुद खुद से मिल जायेगा एक तारा पृथ्वी पर झूमेगा गायेगा आनंद मनायेगा और आसमान के तारे को भी अपना पता मिल जायेगा , वह भी चमक से खिल जायेगा. 

..इति ..
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Saturday, October 8, 2022

कहानी एक परी की (Kahani ek pari ki)

                 
Kahani ek pari ki
Kahani ek pari ki 
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एक परी करती अठखेलियाँ..
परी लोक से पृथ्वी पर आयी..
पृथ्वी पर वो रही विचरती ..
पृथ्वी लगी परी को अलग सी..

परी के मन में पृथ्वी के रहस्य..
जानने की उत्सुकता जागी..
परी लोक से इजाजत मांगी ..
कि वह पृथ्वी पर करेगी प्रवास..

प्रवास दौरान जानेगी पृथ्वी के..
खास राज यहां की आबो हवा..
कैसी है, अलग है परी लोक से..
या वैसी की वैसी है..

पृथ्वी वाश दौरान एक राक्षक की..
नज़र परी पर पडी..
लगी वोह उसे खूबसूरत बडी..
राक्षस ने अपना भेस..
एक संजीदा युवक का बनाया..

यू वो भेस बदल ..
परी के सामने आया ..
की परी से अच्छी अच्छी बातें..
परी का दिल बहलाया और लुभाया..

परी उस राक्षस के मायाजाल में..
जा फंसी, राक्षक ने शिकंजे की..
रस्सी और कसी..
परी को देवलोक से सपने दिखाये..

उसकी बातों में आ..
परी ने अपने रेशमी पंख गंवाये..
और गवायी परी लोक की शक्तियां..
परी को पता ही ना चला..
राक्षस के खुनी पंजों में है उसका गला..

परी कब आलोकित से..
साधारण मानव हो गई..
उसे पता ही ना चला ..
कि उसे जा रहा है छला ..

शिकारी परिंदे के खून का प्यासा..
बुझा रहा था अपनी पिपासा..
राक्षक जल्द ही अपने..
असली रूप में आया..
परी को उसने तरह तरह से सताया..

पंख नोचे सुंदर चेहरा बिगाड़ दिया..
सारा दिव्य शृंगार उतार दिया..
और लगा रोज परी को तडफाने ..
होते थे डरावने बहाने..

परी राक्षक की हकीकत जान..
बहुत पस्ताई अब उसकी..
जान पर बन आई..
फंसी जैसे पिंजरे में मैना फडफाडयी..

राक्षक के खूनी पंजे..
परी की नाजुक गर्दन पर कसे..
बेबस परी की आखों में आंसू..
और चेहरे पर बेबसी..
प्राण पखेरू  उड़ गए ..
गर्दन जैसे और कसी ..

राक्षक का परियों का..
शिकार करने का सिलसिला..
अब तक जारी है..
ना जाने कितनी मासूम परियां ..
इस राक्षक ने मारी हैं..

राक्षक के पापों का घडा..
ऊपर तक भरा है..
फिर भी बेखौफ गुनाह कर रहा है..
ईश्वर से है परियों की है..
पुरजोर पुकार..
हे प्रभु इस राक्षक का..
करो जल्दी संहार ..!!

_Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

कहानी एक परी की/Kahani ek pari ki कविता हमारी नन्ही मुन्नी मासूम अबोध बच्चियाँ जो परियां हैं तितलियां हैं को इस जमाने के खुंखार राक्षसों से सावधान करती है. 

मासूम परियों के पंख नोचे जा रहें हैं, तितलियों के पंखों की रंगत जा रही है, उनके लिये वो खुला आसमान ना रहा, कहाँ हैं वो बाग बगीचे कहाँ है वो फूल सुंदर से .

इन राक्षसों को सज़ा कौन देगा राम,कृष्ण कब जन्म लेंगे इंतजार है, इंतजार की घडीया पड रही भारी ना जाने कितनी परियां अपनी जंग हारी, हर रोज़ है किसी ना किसी के मरने की बारी.

मधु मक्खियों को मार शहद खाया जा रहा है, तितलियों को फूलों से जुदा कर तड़फाया जा रहा है. 

"कहानी एक परी की "ना जाने कितनी परियों की घुटन हैं, सिसकियाँ हैं, आहे हैं, मासूम आँसू भरी निघाहे हैं, न्याय की ईश्वर से आश है, मन उदास है, उम्मीद की किरण सिर्फ ईश्वर के पास है. 

...इति नहीं अभी बाकी है..

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Saturday, October 1, 2022

पापो से कर लो तोबा (Papo se kar lo toba)

Papo se kar lo toba
Papo se kar lo toba
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तुम पापो से..
कर लो तोबा..
फिर जिंदगी में..
जो  भी होगा..
अच्छा ही होगा..

अपने मन और दिल को..
कर लो अच्छा..
जैसे कोई..
छोटा बच्चा..
कोई भी गलत..
काम मत करो..
जब भी मरो ..
निष्कलंक पवित्र ही मरो..

तुम्हारे जैसे..
पवित्र इंसान के लिये..
स्वर्ग के द्वार..
हमेशा खुले मिलेंगे..
ईश्वर भी..
तुम्हारी आत्मा पर..
प्रफुल्लित प्रश्नन मिलेंगे..

अगर गलत काम..
करके तुमने..
एक छोटी सी..
जिंदगी छोटी छोटी..
खुशियो के लिए..
लालच भ्रस्टाचार ..
कर जी है..

तो तुम्हारी..
दुर्दशा सुनिश्चित है..
तुम्हारी आत्मा..
नरक में ही निहित है..
ईश्वर से भी..
तुम्हारी अनंत दूरी..
बढ़ जायेगी..
मृत्यु उपरांत..
तुम्हारी रूह..
चौरासी लाख योनियों में..
चिरकाल भटकती रह जायेगी..

मनुष्य जन्म दोबारा..
दुर्लभ हो जायेगा ..
तू नर्क में..
कीड़ा मकोडा ..
बन पश्चातायेगा ..
मगर तुम्हें..
माफ़ी नहीं मिलेगी..
सजा पूरी करते..
तेरी रूह हिलेगी..

मानुष जन्म तुम्हें..
मोक्ष के लिये ही..
मिला है..
अब तुम्हें तय करना है..
जिंदगी में अल्प..
सुख पाने के लिए..
अल्प काळ में ..
गलत काम करना है..
और मरना है..
या अनंत काल के लिये..
मोक्ष प्राप्त करना है..

ईश्वर से..
सदा के लिये..
नजदीकियां बढ़ानी है..
ईश्वर के साधीज्ञ में..
अनंत उम्र बितानी है..
या फिर आवारगी में..
नरक में युगों तक..
आत्मा भटकानी है..

या फिर इस पृथ्वी पर..
अल्प काळ के लिये..
गलत तरीके से..
धनवान बनना है..
ऐश आराम और..
विलासिता के बाहुपास में..
फस पापो का घडा..
भरना है..
मृत्यु बाद..
लाखों योनियों में..
नरक में सड़ना है..

सच्चे नेक बनो..
मनुष्य जन्म का..
सम्मान करो..
मन ह्रदय को..
पवित्र करो..
पापो से कर लो तोबा..
ईश्वर का वास..
तुम्हारे अंदर होगा..
तुम अनमोल..
रत्न बन जाओगे..

ईश्वर को हमेशा..
अपने मन मंदिर में..
विराजमान पाओगे..
आत्मा तुम्हारी..
ईश्वर में..
समाहित हो जायेगी..
दुबारा ना कभी..
जन्म मरण की..
बारी आयेगी..
शुद्ध आत्मा..
परमात्मा में..
मिल जायेगी..!! 

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कविता की विवेचना: 

पापो से कर लो तोबा/Papo se kar lo toba कविता अल्प काळ के लिये मनुष्य योनी में जन्मे इंसान की मानसिकता और आचार व्यवहार को रेखांकित करती है. 

यह किसी को भी पता नहीं कि वह क्यों पैदा हुआ और इस जन्म में क्या उसे खास करना है, बस सबको यही पता है खाना कमाना है और किसी भी तरह बड़ा आदमी बनना है. 

इंसान सारे जीवों में सबसे ताकतवर सक्षम और बुद्धीमान जीव है.

पृथ्वी पर इंसानों का राज है, अब  इंसान आपस में ही प्रतिस्पर्धा कर लड लड मर रहे हैं, मारक हथियारों का दौर जारी है, वही राजा है जिसमे सबसे ज्यादा जनता मारी है.

पहला और दूसरा विश्वयुद्ध इसके उदाहरण हैं, वर्तमान में यूक्रेन रूस युद्ध जारी है, लाखों की संख्या में इस युद्ध में निर्दोष जनता मारी है. 

आम इंसान किसी भी तरह पैसा कमाने की होड़ में लगा है, इसके लिये चाहे उसे अपना ईमान बेचना पडे.

भ्रष्टाचार करना पडे, किसी मासूम को तडफाना पडे उसे कोई परवाह नहीं बस किसी तरह पैसा आना चाहिये ,चाहे वह गंदी राजनीति करके आये या गलत धंदे कर आये. 

"पापों से कर लो तोबा " कविता में इंसान को स्मरण कराया गया है कि ईश्वर ने मनुष्य जन्म देकर उसे एक बेह्तरीन मौका दिया है, ईश्वर से नजदीकियां बढ़ाने का जन्म मृत्यु से मुक्ति पाने का, इस मौके का सदुपयोग करे, पवित्र हो कर मरे, वर्ना फिर आत्मा को भटकना होगा लाखों युगों तक.

आज छड़भंगुर जीवन में विलासिता में डूबे और अपवित्र मर जाये और अनंत युगों तक अपनी आत्मा को सताये. 

या इस जन्म का सदुपयोग कर युगों तक चरम सुख पाये और एकमेव ईश्वर में विलीन हो जाये. 

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...इति...
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