क्षण भंगुर है जिन्दगानी..
क्षण भंगुर हैं ख्वाब ..
फिर भी जिंदगी की..
जवानी में होता है रुआब..
कहीं तलाश प्यार की..
कहीं तलाश सपनों की बहार की..
जिन्दगी में अपनापन प्यार मिलता है..
प्रेम का इजहार भी मिलता है..
जिन्दगी के सफर में..
कभी धोखा और कृत्रिम..
संसार भी मिलता है..
मिलते हैं कई ज़ख़्म दिल पे ..
उन ज़ख़्मों पर मरहम..
लगानेवाला यार भी मिलता है..
कुछ लोग होंगे..
बहुत खुश तुमसे..
और कुछ लोग नाराज मिलेंगे..
इस जिन्दगी के सफर में..
कई एहसास मिलेंगे..
कभी बांधे जाएंगे..
तुम्हारी तारीफों के पुल..
कभी झोंकी जायेगी..
तुम्हारी आँखों में धूल..
कई अच्छे बुरे लोग मिलेंगे..
तो मक्कार भी आस पास हिलेंगे ..
अपनों से जाओगे ठुकराए..
और परायों से..
अपनाये जाओगे..
ढेर सारा अपनापन प्यार..
परायों से पाओगे..
धन दौलत की चमक..
जब तक है साथ तुम्हारे..
बहुत सारे यार दोस्त..
और रिस्तेदार हैं तुम्हारे..
जाते ही दौलत..
पहचान हो जाएगी गुल..
सब जाएंगे तुझे भूल..
जिन्दगी में कभी..
ऐसा भी पडाव मिलेगा..
जिन्दगी लगेगी सांसे खोती..
दुनिया लगेगी खिलखिला कर हसती ..
मगर तुम्हें लगेगी रोती..
काश जिंदगी सिर्फ..
खुशहाल होती..
संजोये ख्वाबों को..
हकीकत में संजोती..
प्यार और रिश्तों को..
एक मज़बूत धागे में पिरोती..
मगर सत्य यही है..
कि जिन्दगी है क्षण भंगुर..
पानी के बुलबुले सी..
एक टूटते तारे सी..
जिन्दगी को हमेशा जरूरत है..
ईश्वर के सहारे की..
तो जिन्दगी का यही सार है..
जिन्दगी ईश्वर का..
कुछ पलो के लिये उपहार है ..
करो इस उपहार का सम्मान..
ईश्वर का करो ध्यान..
जिन्दगी संवर जायेगी..
अंतिम क्षण ईश्वर के दर्शन पायेगी..
यह क्षण भंगुर सा..
जिन्दगी का बुलबुला..
हो जायेगा व्योम में लोप ..
रह जायेंगे यू दिन रात..
निकल जायेगी जैसे..
तुम्हारे सपनों की बारात ..!!
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कविता की विवेचना:
जिन्दगी क्षण भंगुर/Jindgi shand bhangur कविता जिंदगी के विभिन्न आयामों को देखती है और महसूस करती है कि जिंदगी है क्षण भंगुर.
जिन्दगी की शुरुआत में होती है अनोखे सपनों की बारात, सपने संजोये जिंदगी निकल पडती अपने मनोहारी सफर पर, सफर के
दोरान कई पडाव सुख दुख के आते हैं.
कभी नाराज रिश्ते कभी दोस्त भूले बिसरे, कभी-कभी होती है खुशियो से मुलाकात, अचानक फिर ग़मों की बरसात, कभी हंसते हंसते सोता हूं और रोते रोते उठता हूँ, यही तो है जिंदगी की कहानी.
"जिन्दगी क्षण भंगुर " कविता में ज़िन्दगी को जिया है पानी के बुलबुले सा, आसमान में एक टूटते तारे सा, प्रकृती के सहारे जिंदगी बचा ही लेती है अपना अस्तित्व भले ही हो क्षण भंगुर.
मगर इस क्षण भंगुर जिंदगी ने संसार का हर रंग देखा भाला और महसूस किया और इस क्षण भंगुर जिंदगी को भी भरपूर जिया.
..इति..
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Author is a member of SWA Mumbai.
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