यहाँ वहाँ क्या ढूँढेते हो..
कभी अपने अंदर भी ढूँढो..
इधर उधर कि क्यों सुनते हो..
कभी अपने मन की भी सुनो..
यहाँ वहां क्या देखते हो..
कभी अपनी अंतरात्मा को भी देखो..
आईने के सामने..
सजना सवरना छोड़ कर..
मन दर्पण देख..
आत्मा को संवार लो..
प्रभु तेरे आस पास ही हैं..
बस एक बार दिल से पुकार लो..
दुनिया की दौड में..
तू भी तो सरपत दौड़ा है..
तू तो इंसान है रुक जा..
जरा साँस ले..
फिर सोच क्या तू घोडा है..
अपनी अनमोल सांसो को जान..
अपने आप से कर ले पहचान..
सपने जो तुमने देखे हैं..
उन्हें साकार करने का..
बना लो अब मन..
साधो उसके लिये अपना तन..
तन मन मिला कर करो..
जीवन जीने का यतन..
नींद भर भर सोना छोड़ो..
सुबह उठकर वयाम करो दौडो..
सुस्ती को निकाल फेको ..
फिर जिंदगी की मस्ती देखो..
मेहनत करो और पसीना बहाओ..
मेहनत कस बन जाओ..
"कर्म ही पूजा है "मंत्र को अपनाओ..
सफलता की सीढ़ियां चढ जाओ..
अन्दर तुम्हारे अथाह खजाना है ..
क्यों नहीं तुमने..
अपने अंदर की..
कस्तुरी को पहचाना है ..
यहाँ वहाँ क्या ढूँढते हो..
जो तुम्हें चाहिये तेरे अंदर ही है..
अंतर्मन की आंखे खोलो ..
और अद्भुत खजाना पा लो..!!
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कविता की विवेचना:
अन्दर की आवाज/Ander ki Awaz कविता इंसान की उससे खुद की पहचान कराती है, तुम अनमोल रत्न हो बताती है.
जैसे मृग अपने अंदर छुपी कस्तुरी से अनजान रहता है और जिन्दगी भर उसे ढूँढ़ता रहता है, इंसान भी जिन्दगी भर ईश्वर की तलाश में मन्दिर मस्जिद गिरजा गुरुद्वारे भटकता है इस बात से अनजान कि
ईश्वर स्वयं उसके अंदर ही है.
दुनिया की अंधी दौड़ में इंसान सरपत दौड रहा है, साँस लेने की फुर्सत नहीं है, अरे जरा ठहर जा रुक जा साँस तो ले ले और सोच कि कहाँ से तू आया और कहां तुझे जाना है, तेरे अन्दर ही टेरी मंजिल का पता ठिकाना है.
"अन्दर की आवाज "कविता अपने अंतर्मन की आवाज को सुनने को प्रेरित करती है, जहाँ अथाह खजाना छुपा है, ईश्वर स्वयं मौजूद हैं और तुम्हें भर भर कर आशिष दे रहे हैं और तुम हो कि इधर उधर भटकते फिर रहे हो, इंसान अपने आप को पहचान.
..इति..
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Author is a member of SWA Mumbai.
Copyright of poem is reserved
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