Friday, December 29, 2023

रंगों का जादूगर (Rango ka jadugar)


       
Stanlee Creation 1


Rango ka jadugar
A stanlee Creation 
Image from:Artist Stainlee James



रंगों से खेलना है..
अगर..
चलो "स्टेनली" गॅलरी की..
डगर ..
रंगों का  जादूगर है..
वो..
रंगों से खेल खेल में..
करता है अद्भुत..
शो..

कोरे काग़ज़ पर..
प्रकृति उकेरता..
कभी किसी तस्वीर में..
आत्मा भरता ..
कभी किसी पंछी को..
जिन्दा करता..
उसकी कला की कदर..
इंसान क्या..
हर परिंदा भी करता..

स्वर्ग को..
पृथ्वी पर उतारा है..
ये कौन चित्रकार है..
जिसने भगवान को..
पुकारा है..
ईशू की पुन्हा..
पृथ्वी पर..
आने की तैयारी है..
ऐसी सुंदर चित्रकारी..
तुम्हारी है..

भगवान तस्वीर में..
सजीव हो उठे..
चारो ओर हल चल है..
पशु  पंच्छी में भी..
कोलाहल है..
तुम्हारी चित्रकारी को..
उत्सुकता से निहारते हैं..
ईशा को देख सजीव..
नाम तुम्हारा ..
"स्टेनली" पुकारते  हैं..

क्या पृथ्वी क्या आकाश..
क्या चाँद तारे..
और सूर्य का प्रकाश..
तुम्हारी कूची में..
सब रसा बसा है..
तुमने तस्वीरों को..
इतने आकर्षक ढंग से..
कॅनवास पे कसा है..
तुम्हारा हर चित्र..
हकीकत लगता है..
मन बेचैनी में..
तुम्हारी तस्वीरों में..
विचरता है..

कोरे काग़ज़ के..
और कॅनवास के..
हैं भाग्य जागे..
नतमस्तक हैं ये..
तुम्हारी कूची के आगे..
हर चित्र निर्जीव से..
सजीव हो जाता है..
जो भी तुम्हारी कूची के..
आगे आता है ..
बोलता है हर चित्र..
"स्टेनली" कॅनवास का..
विधाता है..

चित्रों की..
तुम एक नयी दुनिया..
बसा दो..
पृथ्वी वासियों को..
ब्रह्माण्ड की..
शैर करा दो..
सारे देवी देवता..
और अप्सरा परियां..
उतर आये..
तुम्हारी तस्वीरों में..
विचर आये स्वर्ग..
जो लिखा है तक़दीरो में..

"स्टेनली"
तुम्हारी तस्वीरों में..
भरी बहुत आस है..
तुम्हारा हर चित्र..
लगता है..
दिल के बहुत पास है..
ऐसे ही ईश्वर तुम्हें और ..
वर दे..
तुम्हें अपने दिल में..
घर दे ..

तुम और भी..
अद्भुत तस्वीरें बनाओ..  
रंगों और कॅनवास की..
तक़दीरे बनाओ..
तुम्हारी बनाई तस्वीरों का..
कोई जवाब नहीं..
लगती सारी सच है..
कोई ख्वाब नहीं..
ऐसे ही सपनों को..
हकीकत बनाते रहो ..
अनंत काल तक..
तुम रंगों के जादूगर रहो..!!

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Stanlee Creation 1
Painting by Artist Stanlee James
Image from: Artist Stanlee James


        

कविता की विवेचना:

रंगों का जादूगर/Rango ka Jadugar कविता लिखने की प्रेरणा अद्भुत चित्रकार "श्री स्टेनली"  "की 
मनभावन चित्रकारी देख कर, स्वतः ही मन में कविता 
अवतरित हुयी. 

चित्रों में भरा जीवंत भाव मन में घर कर गया, मनमोहक चित्रों को देख अद्भुत सुख और आनंद की अलौकिक अनुभूति हुई. 

चित्रकार को मैं बचपन से जानता हूँ, सालो बाद एक बच्चे को उभरता हुआ चित्रकार पाया, दिल बहुत खुश हुआ अद्भुत सुंदर देख कर. 

हर तस्वीर चित्रकार का स्पर्श पाकर सजीव हो उठी और बहुत कुछ कहती नज़र आई, प्रकृति में निखार आया और हर तस्वीर ने अपना हाल स्वयं बताया. 

"रंगों का जादूगर " कविता "चित्रकार स्टेनली"  को 
लेखक द्वारा अद्भुत प्रतिभा का उपहार है, प्रसंसा से परे 
साधुवाद है, प्रसंसा के लिए शब्द नहीं हैं, चित्रों को देख 
आंखे चौकती हैं, दिल से स्वतः आवाज आती है, बहुत खूब, चमत्कारी अद्भुत. 
          
Rango ka jadugar
Artist Stanlee Creation
Image from:Artist Stanlee James


चित्रकार का परिचय:

                              
Artist stanlee James
Artist:Stanlee James
                


चित्रकार स्टेनली जेम्स की शुरूआती परवरिश और शिक्षा मध्य प्रदेश के पन्ना जिला में हुयी,  स्टेली जी के पूज्य पिता जी हीरा खनन परियोजना मझगाँव खदान में अधिकारी के पद पर कार्यरत थे, 

लेखक ने एक बच्चे के रूप में 
स्टेनली को सालों पहले देखा था, सालों बाद मुलाकात हुई एक प्रतिभाशाली उभरते चित्रकार के रूप में मिल कर मन और दिल प्रफुल्लित हुआ. 

चित्रकार स्टेनली ने स्वयं कठोर अभियास से अपनी चित्रकारी की कला को विकसित किया और चरम ऊंचाईयों तक पहुंचाया और अपने बेटे को भी यह कला सिखाई, और बेटे को फाइन आर्ट की उच्च शिक्षा दिलायी.

लेखक भगवान से स्टेनली और उनके प्रतिभावान बेटे के उज्जवल भविष्य की कामना करता है. इनकी कला सर्वोच्च शिखर तक पहुचे यह ईश्वर से दुवा है. 



इति...

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Saturday, November 25, 2023

दिल में भगवान था (Dil me Bhagwan tha)

                                   
Dil me bhagwan tha


मैंने बसाया था..
तुम्हें अपने दिल में..
भगवान सा..
गुमान था मुझे..
तुम पर बहुत..
मगर क्यों ना हो सका..
तेरी बेवफाई का..
जरा भी भान सा..

क्या करु मैं अब..
तेरे विचार..
बदल सकता नहीं..
तुम्हें तो चाहिये था..
एक शख्स..
बड़ा धनवान सा ..
सब्र किया होता..
मैं भी एक..
काबिल इंसान था..

तेरे बारे में..
सोचा बहुत..
सोचने से खुद को..
रोका बहुत..
फिर भी..
आ ही जाता है ..
दिल में..
तेरी यादों का..
तूफ़ान सा..

मेरा दिल तो कभी..
तेरा अपना घर था..
खुशियो से भरा भरा..
आज एक खण्डहर है..
वीरान सा..
गलत तू थी कि..
मैं था..
यह हम दोनों के..
दरम्यान था..

चाहत मेरी..
दिल में ही..
दफॅन हो गई कहीं...
तेरी बेवफाई से..
उभर ना पाया..
हमारे बीच में आया..
कौन शैतान था..
कदर तूने ना की..
मेरे प्यार की कभी..
ना समझा जो मेरा..
तुझ पर अहसान था ..

शोहरत दौलत..
मिले ना मिले..
इस जीवन में..
एक साथी मिले..
प्यारा सा दिलबर..
इंसान सा..
दौलत की..
ख्वाईश को चुना तूने..
चाहे दौलत के पिछे..
छुपा हैवान था..

क्या उमंगे तेरी..
पूरी होंगी अब..
जिंदगी का रुख..
खुद मोड़ा तूने..
पत्थर बन..
प्यार भरा दिल..
तोड़ा तूने..
तुझे क्या पता..
उस दिल में..
तेरा ही भगवान था ..!!

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कविता की विवेचना: 

दिल में भगवान था/Dil me Bhagwan tha कविता आज के  तथाकथित भौतिक और आधुनिक युग में प्यार कहाँ खो गया है. किसी को पता नहीं. 

मतलब और पैसा यह आज के दौर का खेल कैसा, सब इसी अजीब खेल में उलझे हुये हैं, सच्चे प्यार की तलाश है, सच्चा प्यार मिला भी तो उसकी कदर कहाँ. 

प्यार एक खामोशी है, प्यार एहसास है, महसूस करना होता है, जताया गया प्यार धोखा है, प्यार एक वादा है, कुर्बानी का इरादा है.

जहाँ प्यार वहाँ स्वयं भगवान हैं, सब जानी जान हैं, प्यार भरे दिलों में ईश्वर बसता है, और जहां ईश्वर बसता है वहाँ जहां की सारी खुशिया अपने आप मिलती हैं, कोई दुख  नहीं हर कोई हसता है. 

"दिल में भगवान था " कविता में दिल तोड़ने वाले ने तोड़ दिया, धोखा देना था दे दिया, इस बात से अनजान कि उसने भगवान को नाराज किया है, जिस दिल को तोड़ा वही तो भगवान था. 

...इति...

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Sunday, November 5, 2023

Papa ki yaad( पापा की याद)


                                
Papa ki yaad
Papa ki yaad
Image from:pexels.com 


एक कमरा था..
पापा के ओज से..
भरा भरा सा..
आवाज आती थी..
कमरे से उनकी  ..
यदा कदा..
खाना पानी और दवा..
या सर दुखता है दबा..

ईश्वर की स्तुति..
उनकी रजा में ही..
संतुष्ट रहने की सहमती..
आज कमरे में..
है खामोशी खाली ..
जैसे खुशियो ने..
नज़र चुरा ली..
कान लगा कर..
सुनता हूं..
शायद बोलेंगे पापा..

कमरा पापा की..
दुनिया का प्रतीक था..
याद किया उन्होंने..
हर पल..
जो उनका अतीत था..
कुच्छ अच्छी बाते..
कुछ अनकही सच्ची बाते..
फ़िर से..
उठ खडे होने की चाह..
ईश मिलन का रास्ता..


आंखे जो उस कमरे में..
जहान देखती थी..
हमेशा सजग..
उम्मीद अनहोनी की..
वो आंखे बंद हो गई..
सदा के लिये..
दुखद अनहोनी थी..


ईश्वर की अराधना..
कुछ बिना मांग की..
वो करते थे प्राथना..
तेरा किया अच्छा लागे..
तेरा भाना सच्चा  लागे..
और थी ना कोई बात ना..

खामोशी और..
ईश्वर से सच्चा प्यार..
और किसी छह की..
उन्हें ना थी दरकार..
बीच बीच में..
स्वजनों को पुकार..
यही था उनका.. 
रोज का अखबार ..

अपना परिवार और..
अपनी बनाई..
पारिवारिक दुनिया..
बिखरा बिखरा सा..
दिखता था कुनबा ..
फिर इकठ्ठा करू..
तिनका तिनका..
शायद मन था उनका ..

एक दिन सबको..
ईश मिलन को..
जाना है..
जिस ईश्वर से..
प्रकट हुए..
उसी में समाना है..
मौत तो एक बहाना है..
पापा भी हुये जुदा..
कहा अनंत काल के लिये..
अलविदा अलविदा..!!

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कविता की विवेचना: 

पापा की याद/ Papa ki yaad कविता एक पुत्र की अपने पापा के प्रति एक वेदना भरी अश्रुपूरित श्रध्दांजली है.

उन्होंने अत्याधिक पीड़ा कष्ट बिना किसी शिकायत के सहे, एक कमरें एक बिस्तर में जीवन के दस वर्ष गुजारे और हमेशा ईश्वर का धन्यवाद ही किया और तेरा भाना सच्चा लागे कह कठिन जीवन जिया. 

काश जीते जी ईश्वर मिल जाता तो मौत को बीच में ना लाता, शायद मौत ही ईश्वर से मिलने की कड़ी है, सारी दुनिया से नाता तोड़ मौत ईश्वर से मिलाती है.

हम अपने के खोने को रोते हैं, मगर सारे जीव ईश्वर के होते हैं और अपने प्रिय को वापिस बुलाता है, अंत में हम सबका ईश्वर से ही नाता है. 

"पापा की याद " दिल से निकले शब्द हैं जो पलके भिगोते हुये अपने जन्म दाता को दिल की गहराई से याद करते हैं जो पापा 
अनंत काल के लिये ईश्वर की आगोश में चले गये हैं. 
शायद हमारे लिये ईश्वर के चरणों में जगह बनाने, हमे भी तो वहीं जाना है. 

...इति...

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Tuesday, September 19, 2023

जीवन यात्रा (Jeewan Yatra)

                    
Jeewan yatra
Jeewan yatra
Image from:pexels.com 




जीवन पृथ्वी की..
एक छोटी सी..
यात्रा है..
इस यात्रा में..
तुम्हारे हर एक्शन पर..
फुल स्ताप, कोमा..
और मात्रा है..

दृष्टि तुझ पर..
हर पल रखता..
जगत विधाता..
तेरा जीवन दाता..
ईश्वर ने हमें..
रिटर्न वीजा पर..
यहां भेजा है..
उनके पास तेरी..
जीवन डोर..
और धडकता तेरा..
कलेजा है..

यात्रा में..
रास्ते से ना भटको ..
ईश्वर के बताये..
मार्ग पर चलते रहो..
कहीं मोह माया..
लोभ व्यभिचार..
रिश्तों नातों में..
मत अटको ..
वर्ना पड़ेगा भारी..
तेरे कर्मों पर..
चलेगी आरी ..
बन्द होंगे..
स्वर्ग के द्वार..
खुलेंगे नरक के किवाड़..

यात्रा का शुभारंभ..
कोमल भोला चेहरा..
नन्हा सा बच्चा..
लगता है प्यारा..
सबको अच्छा..
बचपन का वरदान..
मौज मस्ती..
और किलकारियाँ..
बीतते ही बचपन..
घेरती दुख चिन्ता..
और बीमारियाँ..

इस बीच..
जवानी का विश्राम..
भी आता है..
गुलछर्रे आनंद..
परमानंद..
प्रेम प्रसंग..
सब कुछ मिलता है..
जीवन बहुत भाता है..
यहां सयम है जरूरी..
वापिस भी जाना है..
ना समझो..
इसे मजबूरी..

यात्रा समाप्ति का..
वक्त आते आते..
खींच जाती..
चिंता की रेखाएँ..
क्यों मन..
वापिस जाने का..
नहीं बन पाता..
झुर्रियां बीमारियाँ..
लेकर आता बुढ़ापा..
खुशी खुशी कर लो..
वापसी की तैयारी..
वर्ना सज़ा है..
बड़ी भीषण" बीमारी"...

ईश्वर को..
रिपोर्ट किया जायेगा..
तुम्हें जबरदस्ती..
डिपोर्ट किया जायेगा..
सजा के रूप में..
नर्क का द्वार..
खुला मिलेगा..
यातनाओं से..
तेरा कलेजा हिलेगा ..
ईश्वर से भी..
हो जायेगी दूरी..
84 लाख योनी..
भुगताने की मजबूरी..

जिसने की..
नियमों अनुसार..
जीवन यात्रा..
हर पल ईश्वर को..
याद रखा..
कहीं इधर उधर..
ना भटका..
वापसी का था..
इरादा पक्का..
तो वापसी का इंतजाम..
ससम्मान होगा..
तुम होगे ईश्वर के..
खास मेहमान..
प्रभु संग रहोगे..
स्वर्ग लोक धाम..!!

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कविता की विवेचना: 

जीवन यात्रा कविता इस मृत्यु लोक में एक अल्प सफर की कहानी है, जो अनंत काल से है पुरानी है. 

अनंत काल से जन्म मरण जारी है, आना जाना लगा है, कहाँ से आते और वापिस कहाँ जाते किसी को नहीं पता, फिर भी स्वर्ग नरक की परिकल्पना इन्सान ने की है. 

हम प्रकृति और ईश्वर का एक हिस्सा हैँ, अल्प समय के लिए इस पृथ्वी पर आये हैं एक यात्री की तरह ,हमारे आने जाने की अवधि ईश्वर द्वारा पूर्व निर्धारित है. 

एक निश्चित समय पर हमे वापिस जाना है यह तय है और पक्का है, तब भी इंसान मोह माया और भौतिक सुख में पड जाता है और वापिस जाना नहीं चाहता. 

"जीवन यात्रा "कविता एक जीवन की अल्प अवधि की यात्रा का वृतांत है, ईश्वर में आस्था रख इस यात्रा का निर्वहन किया जाये तो विश्वास है कि हम ईश्वर के नजदीक रहेंगे और इस यात्रा को सफ़लता पूर्वक पूरा करके पुन्हा ईश्वर के साघेण्या में सरण पायेंगे. 

...इति...

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Thursday, September 7, 2023

ईश्वर ही पक्का पता (Ishwar hi pakka pata)

                   
Ishwar pakka pata
Ishwar pakka pata
Image from:pexels.com 


हे प्रभु..
तेरे हुक्म से आया..
तेरे हुक्म से जाना है..
तुमसे रिश्ता..
सदियों पुराना है..
तेरे चरणों में ही मेरा.. 
पक्का पता ठिकाना है..

मुझे नहीं मालूम..
क्या है आत्मा का किस्सा..
मगर एहसास कि..
मैं हूँ  तुम्हारा हिस्सा ..
तेरे हुक्म बगैर संसार में..
पत्ता भी नहीं हिलता..
प्रकृति जीव जंतू..
पेड़ पौधे फल फूल..
तेरी ईच्छा से ही खिलता..

भाग्य में..
तुमने जो लिखा है ..
वही जीवन में है मिलता..
लगन मेहनत प्रेरणा..
तेरा ही आशिष है..
सफ़लता..
तेरी दी बक्षीस है..
तो इतराना कैसा..
इंशा ने बनाया पैसा..

पैसे की खनक..
जिंदगी की चमक..
ये चंद दिनों का..
मेला है..
तेरे बनाये भाग्य के..
खेल में..
इंसान खेला है..
संसार रूपी मंच पर..
अभिनय जारी है..
जिसका रोल खत्म..
उसकी जाने की बारी है..

मंदिर मस्जिद तपस्या..
क्या है इंसान के.. 
जीवन की समस्या..
तेरा नाम जप के..
तुझे पाना है..
मुझे पता है..
तुझ मैं हूँ समाहित..
एक तू ही प्रभु..
मेरा पक्का पता..
और ठिकाना है..

तेरी लीला..
समझ से बाहर है कि..
खुद से दूर क्यों किया ..
मेरे अन्दर जलता है..
तेरी तपस्या का दिया..
तुम से बिछडे हैं..
तुम में समाना है..
क्यों कि प्रभु..
तू ही मेरा..
पक्का पता..
और ठिकाना है..!!

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कविता की विवेचना: 

ईश्वर ही पक्का पता/Ishwar hi pakka pata कविता ईश्वर के अपने अन्दर होने के एहसास की परिणिति है. 

श्री कृष्ण भगवान ने स्वयं कहा कि वो हर जीव में मौजूद हैं, जब खुद से पूछते हैं कि कौन हू मैं तो यही आवाज आती है कि तू ईश्वर का ही एक हिस्सा है.

हम मोह माया और अपनी खुद्दारी की एक अलग दुनिया बना लेते हैं और दौलत पैसे के पीछे भागते नज़रं
आते हैं. जब कि पता है कि साथ कुछ नहीं जाना है. 

धन दौलत सफलता ईश्वर का आशिष और बक्षीस है, 
इसमे इतराना कैसा सब कुछ ईश्वर ही है, इंसान ने बनाया पैसा. 

"ईश्वर पक्का पता "एक आत्मा की आवाज़ है और यही सत्य है, सत्य था और सत्य रहेगा, ईश्वर का वास हर इंशा मे है अह्सास करें और अपने प्रभु पर सदेव विश्वाश करें. 

...इति..
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Saturday, August 5, 2023

अपने का सपना (Apne ka sapna)

          
Apne ka sapna
Apne ka sapna
Image from: pexels.com 


रिश्तों में..
कोई तो हो अपना..
रहा जिंदगी भर..
यही एक सपना..
अपने से पाने को..
मन तरस गया..
नैनो से नीर..
बरस बरस गया..
तलाश अभी तक..
जारी है..
शायद मेरी ही..
मती मारी है..

काश कोई रिश्ता..
अपना होता..
मैं चैन की नींद सोता..
मेरा जन्म..
अधूरा सा लगाता है..
अपने किसी को..
पा लेता..
तो जन्म सफल होता..
अपने के लिये..
दिल मे जगह..
अभी तक खाली है..
जहां मैंने..
गमी बसा ली है..

मन उदास है..
कभी लगता है..
कोई दिल के..
बहुत पास है..
कह दू उसे..
दिल की कुछ बातें..
नहीं कटती अकेले..
विरान रातें..
आंखे बोझिल हैं..
कोई नहीं दिखता..
अपनी परसाई के अलावा..
अपने कहीं ओझल हैं..

क्या यह जिन्दगी..
एक धोखा है..
या अपनों की..
तलाश का..
एक और मोका है..
सारी उम्र बीत गई..
कई रातें आई..
और रीत गई..
अभी तक ना मिला..
कोई अपनों में अपना..
क्या यू ही..
मर जाऊँगा..
लिये अधूरा सपना..

एक दिन..
भगवन सपने में आये ..
गीता के बचन..
याद दिलाये..
तुम हो मुझमे समाये..
तुम आत्मा हो..
एक किस्सा हो..
जन्मों जन्मों तक..
मेरा ही हिस्सा हो..
रिश्ते नाते..
मैंने ही बनाये और..
कभी जोड़े कभी तोड़े हैं..
जो तुम्हें..
अपने से लगते..
अपने थोडे हैं..

अपने अपने से..
लगते जो..
तुम्हारे मन को..
धोखा है वहम है..
तुम एक सच्ची आत्मा हो..
यही बस अहम है..
अकेले आये थे..
अकेले ही जाना है..
फिर क्यों..
तरस तरस..
अपनों को पाना है..
महाभारत में..
अपने अपनों से..
लड मरे..
जब कि स्वयं ईश्वर थे..
 सामने खडे..

अच्छा ही है..
दुनिया में कोई..
अपना नहीं..
अपना सा रिश्ता..
खो गया कहीं..
अपने के..
मिल जाने से..
मोह बढ़ता..
जीने की चाह जगती..
असानी से ना मरता..
विरह अग्नि..
ना होती बाकी..
ईश्वर की..
याद ना आती..
अपने के अभाव में..
एक आस है..
ईश्वर दिल के ..
बहुत पास है..

तेरे आँखों में..
जो सपने हैं..
प्रभु सदा से हैं..
और थे..
वही तेरे अपने हैं ..
उन्हीं ने तुम्हें..
इस धरा पर भेजा ..
निकाल अपना कलेजा ..
क्यों अपने की..
तलाश में..
व्यर्थ समय गवाता है..
तेरा अपना ही है..
जो यह विधाता है..
विधाता की प्रीत में ..
रम जा..
ईश्वर का स्नेह प्यार..
सदा पा..!!


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कविता की विवेचना: 

अपने का सपना/Apne ka sapna कविता आज के व्यवसायिक युग में अपनत्व कहीं खो  गया है, सब कुछ पैसा ही हो गया है. जैसे महौल को इंगित करती है. 

कोई रिश्ता अपना ना रहा, लहू, लहू को नहीं पहचानता पैसा ना हो तो कोई आपको नहीं जानता.

रिश्तों का स्वर्ग सा आनंद कहीं खो गया है, अब सोशल मीडिया अपना हो गया है, सब अपने आप आप मे गुम हैं. 

ऐसे में रिश्तों की क्या जरूरत है, अपना सा दिखता कोई नहीं सब अकेले अकेले निकल पडे, इसलिये  अपने की खोज छोड़ो भगवान से नाता जोड़ों वही हमारे अपने हैं. 

आखिर भगवान के पास ही जाना है, वो ही पक्का ठिकाना है, वही से आये थे ईश्वर ने अपने रिश्ते निभाए हैं. 

इतिहास गवाह है महाभारत में अपने ही अपनों से लड मरे, भाई ने भाई को मारा, पितामह भी अपने प्रिय अर्जुन के हाथों मरे, वहाँ तो श्री कृष्ण भगवान स्वयं मौजूद थे.उन्होंने भी होनी को होने दिया ताकि संदेश जाये यहां कोई नहीं किसी का अपना, अपना बनाना है एक सपना और सपने कभी सत्य नहीं होते. 

"अपने का सपना " कविता निहित करती है, अकेले आये थे अकेले ही जाना है, भगवान के पास ही तुम्हारा ठिकाना है, किसी से कोई आस मत रखो, भगवान पर विश्वास रखो और उनको बना लो अपना, जबकि वो तो पहिले से ही तुम्हारे हैं, थे और अनंत काल तक रहेंगे, तुम खुद समझो वो तुमसे नहीं कहेंगे. 

तो ईश्वर के हो जाओ और जीवन आनंद पाओ. 

...इति...

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Saturday, July 8, 2023

आँचल सी रहो (Aanchal si raho)

                 
Aanchal si raho
Aanchal si raho
Image from:pexels.com 


तुम मेरे ख्यालों में..
नदी सी बहों ..
हवा के झोंकों से..
कुछ कुछ कहो..
मेरे दिल में..
आँचल सी रहो..

मचलता है मन..
रूबरू होने को..
सपनों में दिखती हो..
ओझाल होने को..
दिल करता है..
आंखे बंद कर..
तेरा दीदार करू..
बाते हजार करू..

कल्पना के घोड़े..
दौड़ता हूँ..
कभी बहुत पास..
कभी दूर हो जाता हूँ..
नजदीकियां भाती हैं..
तेरी याद..
चलचित्र सी आती है..
शकुन पहुंचाती है ..

तुम पक्षी बन..
कहीं उड़ चली..
ना भायी मेरी गली..
उजड़ गया..
मेरा आशियाना..
रुसवाई था..
सिर्फ एक बहाना..
तुझे भाया..
परवाना बेगाना..

कैसे रास्ता रोक लू..
कैसे तुझे टोक दू..
अधिकार की डोर को..
तूने ही तो तोड़ा है..
मुझे अंजान..
मंजिल की ओर..
मोड़ा है..
कौन आया..
हमारे बीच रोड़ा है..

कचरें सामान सी..
तेरी यादे..
क्यों ढोता हूँ..
फेक दू कूड़ेदान में..
मगर फिर..
भावुक होता हूँ..
किसी पुरानी..
दिल की अलमारी में..
यादों को संजोता हूँ..

किसी अनजान..
मोड पर..
सारे बंधन तोड़ कर..
खडा हूँ अकेला..
सूना सूना लगे..
इस दुनिया का मेला..
इस मेले में..
खो जाऊँगा..
फिर भीड़ का..
हिस्सा हो जाऊँगा..
भुला नहीं तुझे..
मगर भुलायुंगा ..!!

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कविता की विवेचना: आंचल सी रहो/ Aanchal si raho कविता किसी चाहने वाले का दिल का गुबार है. 

सच्ची चाहत आज कल कहाँ रही, मगर अगर कोई धोखे से सच्चा चाहने वाला मिल गया तो उसकी कदर नहीं की ज़माने ने. उसे ना समझ ही समझा आज के तथाकथित समझदारी ज़माने ने. 

सच्चे चाहने वाले को अक्सर धोखा ही मिला है, इस भौतिक वादी युग में चाहत की कीमत कहाँ,जमाना
पूछता है, चाहत तो तेरी ठीक है पर दौलत कहाँ. 

प्यार काफी नहीं आज के जमाने में प्यार के साथ जरूरी है पैसा तो निभ ही जागेगा,तू हो चाहे जैसा. 
पैसे की खनक बेवफ़ा बना देती है. 

कसूर उनका नहीं है ज़माने का जिसने प्यार को पैसे से तोला और दौलत को प्यार का मापदंड बना दिया. 

"आँचल सी रहो " कविता में लाख ठुकराए जाने के बाद भी प्रेमी प्रेमिका की यादें संजोये रखना चाहता है, चाहते हुये भी नफरत नहीं कर पाता, और दिल को एक कोना अपने प्यार को दे देता है. 

... इति...

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Thursday, July 6, 2023

अनाड़ी (Anadi)

          
Anadi
Anadi
Image from : pexels.com 



सीख लिया है मैंने..
आंसुओ को पीना..
ग़म में..
सिसकते सिसकते जीना..
अच्छा हुआ तू..
बेगानी हुयी..
यही खत्म कहानी हुयी..

खत्म हुआ सिलसिला..
रिश्ता निभाने का..
ढकोसला था प्यार तेरा..
बोझ था ज़माने का..
जीते जी टूट गया बंधन..
मर कर टूटना ही था..
सात पल ना निभे..
सवाल कहाँ..
जन्मों जन्मों निभाने का..

जन्म से पहले..
तुम कहां थे..
और मैं था कहाँ..
और मरने के बाद..
जाओगे कहाँ..
जब कुछ पता नहीं..
तो ग़म किस बात का..
अकेले ही..
इस दुनिया में है..
आना जाना..
कभी पिछले..
जन्म के रिश्ते को..
किसी ने ना पहचाना..

अच्छा हुआ मैंने..
ना ली साँसे उधार तेरी..
हिम्मत ना थी..
इन्हें लौटाने की..
मेरी सांसों का..
एहसास होगा तुम्हें भी..
रख लो..
अब जरूरत नहीं..
इन्हें लौटाने की..
मेरी जिंदादिली..
याद दिलाती रहेगी..

नजरों में बसाया था..
"तुम्हें..."
अब किरकिरी सा..
चुभता है..
कोई दवा नहीं मिल रही..
इसे मिटाने की...
तुम मेरी नजरों से ..
हट जाओ दूर..
मुझे आखों में..
जहान बसाना है..
जरूरत नहीं अब..
तेरी तस्वीर बसाने की..

मेरी धडकने ..
तुम साथ ले गये..
"बेधडक.."
नहीं समझी.. 
औपचारिकता भी ..
इन्हें वापिस लौटाने की..
छल के हर लिया..
दिल विल मन मेरा..
कितना स्वार्थी है..
स्वभाव तेरा..

खरीदी करने..
निकले तुम ..
थोडा सा दिल..
थोडा सा मन..
थोडा सा यार..
थोडा सा प्यार..
सब लिया उधार..
था सब अनमोल..
मगर किया तूने..
तोल मोल..
नापा, नफा नुकसान ..
सद्बुद्धि दे तुम्हें भगवान..

अचानक तुझे..
प्यार के बाजार में..
सौदा नया जचा ..
पुराने में अब..
इंट्रेस्ट ना बचा..
मैं सौदा बन..
अवाक रह गया..
और तुम बने..
चतुर व्यापारी..
सारी दिल की दौलत..
तेरे सामने हारी..
सच है दुनिया वालों..
मैं निकला अनाड़ी..!!

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कविता की विवेचना: 

अनाड़ी/Anadi कविता एक सच्चे प्रेमी बनाम एक व्यापारिक दृष्टी कोण वाली तथाकथित आधुनिक प्रेमिका की कहानी है.

एक तरफ प्रेमी अपना सर्व अपने प्यार के लिये लुटाने को तैयार है और प्रेमिका इसे एक अच्छे या बुरे सौदे के रूप में जांच परख रही है, साथ ही इससे और बेहतर सौदे की भी उसे तलाश है. 

जब तक मन चाहा सौदा नहीं मिलता, पुराने को और जांचा परखा जा रहा है, और किसी तरह काम चलाया जा रहा है. 

जैसे ही किसी सलाहाकार ने सलाह दी, नया सौदा समझाया, पुराने को तोड़ने में पल भी ना लगाया, और बेरहमी से तोड़ दिया रिश्ता पुराना, दिल पर क्या 
बितेगी हाल भी ना जाना. नये सौदे के साथ हो लिये.

"अनाड़ी " कविता आज के भौतिक वाद ज़माने को रेखांकित करती है  जहा भावनाऔ का कोई मोल नहीं 
कोई त्याग कुर्बानी अब कोई प्यार में नहीं करता, हर कोई दौलत और भौतिक सुखों के लिये मरता, उसके लिये चाहे मर्यादित सीमा लाघनी पडे. 
किसी से दिल ना लगाना, कब हो जाये बेगाना..

...इति...

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Saturday, June 3, 2023

स्वर्ग सिधार (Swarg sidhar )

             
Swarg sidhar
Swarg sidhar
Image from:pexels.com 

              

चलो जाये स्वर्ग सिधार ..
इस निर्मोही दुनिया में..
भटकने से अच्छा..
ईश्वर का पाये प्यार ..
यहाँ रहकर भी क्या है करना..
जब पक्का है जरूर है मरना ..

फिर धन के पीछे क्यों..
मारा मारी..
दुनियादारी निभाते निभाते..
जिंदगी बीत गई सारी..
की मंदिर मस्जिद की लड़ाई..
मगर कभी भगवान से..
लगन लग ना पायी..

धनवान और बलवान..
बनने की होड़ में ..
हुयी इंसानियत कमजोर..
एक दूजे को कुचल कर..
इंसान आगे भागा है..
अंत समय आने पर भी..
कभी ना नींद से जागा है..
बुरी गत देखी..
इंसान ने इंसान की..
तब भी याद ना आई..
भगवान की..

पाप को इंसान ने अपनाया है..
अपना उद्देश्य बनाया है..
इंसान ने इंसान के आगे..
लगाया है रोड़ा ..
जब भी मौका मिला..
इंसान ने किये दंगे फसाद..
एक दूजे का सिर है फोड़ा..
यह सिलसिला..
आदि काल से जारी है..
इंसानियत पर हैवानियत भारी है ..

ईशा को सूली पर टांगा..
सिख गुरुओ को..
मारा सताया..
इंसानियत ने क्या पाया..
फिर भी आज तक..
खत्म ना हुयी लड़ाई..
कभी कोई हिटलर आया..
कभी हिरोशिमा- नागासाकी ..
पर परमाणू बंब बरसाया..

होते ही रहे हैं..
इंसान से इंसान के पंगे..
कभी भारत पाक के नाम..
1947 बटवारे के दंगे..
कभी बहाने से 1984 का..
नर संहार ..
किसी ना किसी बहाने से..
इंसान रहा इंसान को मार..
ईश्वर के अवतार भी..
शांति और मिल कर रहना..
ना सीखा सके..
अवतार आ आ थके..

इंसान लगातार पैदा होते रहे..
और निरंतर लड मरे..
ईश्वर भी सोच में पडा ..
जब इंसान के पाप का..
भर गया घडा..
कि इस इंसान का क्या करें..
या तो अपनी बनाई..
यह दुनिया समाप्त कर दे..
या सैतानों और हैवानों को..
पैदा होते ही..
मरने का वर दे..


या इंसान नामी जीव से..
बल बुद्धी विधा सब हर ले..
इंसान को भी..
जानवर कर दे..
जो होगा बलवान..
एक दूजे को मार खाएगा..
कोई भेड़िया या शेर बन जायेगा..
भेड़ बकरिया और गीदड़ भी..
रहेंगे बाकी ..
दुनिया बन जाएगी स्वर्ग सी..
तो इंतजार किस बात का..
हो जाओ तैयार..
चलो जाये स्वर्ग सिधार..!!

Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

स्वर्ग सिधार /Swarg sidhar कविता पृथ्वी पर इंसान की फितरत को इंगित करती है. 

जब से पृथ्वी पर इंसान नाम का जीव भगवान ने बनाया है, इंसान ने दुनिया में उत्पात मचाया है. मार काट हिंसा यही रहा इंसान के कामों का हिस्सा. 

इंसान ने इंसान को समय समय पर मारा है, यहां तक कि ईश्वर के अवतार को भी नहीं बक्सा, ईशा को सूली पर चढाया, सिख गुरुओ को मारा अत्याचार किये. 

कभी हिरोशिमा नागासाकी पर परमाणु बम बरसा तबाही की, कभी कही हिटलर पैदा हो गया, कभी अँग्रेजों ने अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिये सारी दुनिया को सताया और अपना गुलाम बनाया.

कभी अपना अधिकार बढ़ाने के लिये विश्व युद्ध किये 
कमजोर को मारा कुचला, कभी भारत पाक के नाम 1947 के दंगे और कभी 1984 का नर संहार, हर हालत में इंसान रहा इंसान को मार और सुपर पावर बनने की दहाड़.यूक्रेन की तबाही ताजातरीन उदाहरण है. 

"स्वर्ग सिधार " कविता में पृथ्वी पर इंसान के रहने का कोई ओचित नहीं बनता, भगवान भी इंसान को बना पस्ता रहा है, शायद इंसान से बल बुद्धी विधा वापस ले ले और इंसान भी जानवर बिरादरी का हिस्सा हो जाये, जंगल राज स्थापित हो जाये. 
इसलिए अभी वक़्त है चलो स्वर्ग सिधार जाये, भगवान की नजदीकियां और प्यार पाये. 

..इति..
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