Thursday, April 20, 2023

सिखी (Sikhi)

                   
Sikhi
Sikhi
Image from:pexels.com 


एक कौम होई ऐ सिखी..
जिहन्ना नु आजादी ना दिठी ..
सबने ऐश कौम नु सत्ताऱ्या ऐ..
अपना गुलाम बनाया ऐ..

जद कदी वी सिखी दे..
हक दी आवाज उठाई ऐ..
बदले विच सूली पाई ऐ..
वाहे गुरु जी तुहडा की भांडा ऐ ..
क्यों सिख हो के..
सिर्फ मर जाणा ऐ..

हर कोई सिख तौ ..
कुर्बानी मंगे..
ज़द वी हक दी गल आवे..
सूली ते टंगे..
गुरु जी दे लाल..
कंदा विच  चिडाये ..
सिख योद्धे..
चर्खडिया ते चडाये ..

क्यों सिखी च सिर्फ..
मरना लिखया ऐ..
भांवे भगत सिंह, उधम सिंह हो..
अते शहीद सराभा..
मर गये ये सिख बोल के..
जय भारत माता..

बदले विच सिखां नु..
पहला 47 च फ़िर ..
84 च चुन चुन कतळ किता..
देश दा बटवारा..
सिखां दी लासाँ ते किता..
देश कि ..
यह पंजाब दा बटवारा सी..

सिखां की पाया..
सारा कुछ गवाया ..
सिखां दे होम लैंड पंजाब नु..
चार टुकड़ियां विच वड दिता ..
सिखां दा स्वाभिमान..
खंड खण्ड किता..

सिख भारत विच..
दूजे दर्जे दे नागरिक हो रह गये..
सारा सिखा दा मान सम्मान..
बेज्जती विच बह गया..
सिख देश च..
चुटकला बन रह गया..

दशमेश पिता..
तेरी कौम ने क्यों किता समझोता..
जो अत्याचार मुगल कर रहे सन..
सिख स्वाभिमान लयी ..
लड रहे सन..
स्वाभिमान किथे रह गया बाकी..

सिखां दे धार्मिक निशान खो लय..
सिखां दे पहले पातशाह ..
बाबा नानक दे स्थान..
जो सीखीं लयी मक्का सन..
सिखां तो अँड कित्ते..
जिस तरह सिखां दे अंग वड दिते ..

ता वी सिख जिंदा ने..
अरदास विच आपणिया ..
भावनावश दस..
आपने आप तो शर्मिन्दा ने..
होली होली सिखी स्वरूप..
लोप हो रिहा ऐ..
कोण ऐ जो सीखी दी..
हालत ते रो रिहा ऐ..

सीखी दी हून पहचान की..
मन मसोस बैठ..
होर ग़म दे अश्रू पी..
सिख अनमना जिहा ..
जी रिहा ऐ..
वाहेगुरु तेरा भाणा साचा लागे..
कह अपने आप नु..
तसली दे रिहा ऐ..

अज सरकार विच..
सिख दा कोई नुमाइंदा नहीं..
सिखा नु गुंठे ला सडीया ऐ..
ज़द वी कोई मंग मंगे..
84 दे हसर द डर दिखोदे ने..
सिखा नु बदनाम कर..
खून दे अश्रू रुलादे ने..
राज नेता वी सिखा ते..
वार करण तो बाज नहीं ओदे ..

ता वी सिखी तेरे ते नाज़ ऐ..
सिखी सच दी आवाज़ ऐ..
सिखा दिया कुर्बानीया ..
एक दिन रंग दीखोंण गिया..
सिखा नु बुलन्दिया ते..
जरूर पहचोंण गिया..!!

Jpsb blog 

कविता दी विवेचना:

सिखी/Sikhi कविता सिखा दे कुर्बानी दे इतिहास होर भारत नू आजाद करन लयी दितीया सिख कौम दिया कुर्बानिया नू underline करके लिखी गई है. 

कुर्बानिया दे बदले सिखी नू की मिलिया ऐ, देश विच दूजे दर्जे दे नागरिक दी हेसीयत .सिख नु चुटकला बना छडीया ऐ, पंजाब दे चार तोटे कीते, 1947 ते 1984 ते सीखा दा कळलेआम होया .

किसे नु सज़ा नहीं होई, जद की सब  नू पता ऐ कातळ कोन ने, होली होली  सिखा दा सिख स्वरुप गायब हो रिहा ऐ. 

सिखा दे पवित्र स्थान सिखा तो खो के पाकिस्तान नू
 दीते जो कि नही सी होना चाहिदा ,ननकाना साहिब, पंजा साहिब, करतारपूर  साहिब सिखा कोल होणे 
चाहीदे सन जो कि नही हन .

सिखा नू न्याय कद मिलेगा पता नहीं, या कदी मिलेगा 
कि नही,मुघल काल तो आज तक सिखा तो कुर्बानीया  ही मगीया जा रहीया ने.

सिखा नु सतया जा रिहा ऐ, मजबूर हो  अपनी पहचान लुकोण लग पये ने. 

कि सिखी स्वरुप  नु हमेसा लयी गायब करण दी साज़िश ऐ. सिखी बहुत बुरे दौर तौ गुजर रही ऐ  कोण ऐ सिखी दी इस हालत ते रोन वाला. 

सचे पातशाह वाहेगुरु यह किसतरह दा तुहडाॅ भाडय़ा ऐ. वाहेगुरु मेहर बखसे ,तेरा भाना साचा लागे. 

वाहेगुरु जी दा खालसा ,वाहेगुरु जी की फतेह !

...अधूरी दास्तान  ...

Jpsb blog
 jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai. 
©️ Copyright of poem is reserved 








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