Saturday, November 22, 2025

भारत भाग्य विधाता (Bharat Bhagya Vidhata)

Bharat
Bharat Bhagya Vidhata
Bharat Bhagya Vidhata
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गीत : भारत भाग्य विधाता 🎵

(कोरस)
जय भारत, जय भारत,
विश्व सारा गाता है!
धरती का स्वर्ग बना तू अब,
भारत भाग्य विधाता है॥

(पद 1)
उजियारा हर कोने में है,
हर दिल में विश्वास नया,
शांति का दीप जल उठा ,
सपनों का इतिहास नया।
चाँद-सितारों पर लिखता भारत,
अपना परचम लहराता है॥

(कोरस)
जय भारत, जय भारत,
विश्व सारा गाता है!
धरती का स्वर्ग बना तू अब,
भारत भाग्य विधाता है॥

(पद 2)
न भूख रही, न दर्द कोई,
हर मन में अब उल्लास है,
मेहनत, निष्ठा, प्रेम का संगम,
यही देश की साँस है।
सत्य-अहिंसा के पथ पर चल,
विश्व को राह दिखाता है॥

(कोरस)
जय भारत, जय भारत,
विश्व सारा गाता है!
धरती का स्वर्ग बना तू अब,
भारत भाग्य विधाता है॥

(पद 3)
हर नारी अब शक्ति स्वरूपा,
हर बालक में दीप जले,
युवा हैं भारत के कंधे,
जो सपनों को सच कर चले।
विश्व समता, मानवता का,
संदेश यही फैलाता है॥

(कोरस)
जय भारत, जय भारत,
विश्व सारा गाता है!
धरती का स्वर्ग बना तू अब,
भारत भाग्य विधाता है॥

(अंतिम पद)
आओ मिलकर वंदन करें,
इस नवयुग के निर्माता को,
भारत ने फिर इतिहास  रचा ,
प्रेम-शांति का दूत  कहलाता है।
विश्व कहे अब गर्व से -जग का, 
“भारत भाग्य विधाता है!” 🌺🇮🇳

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कविता की विवेचना:

भारत भाग्य विधाता/Bharat Bhagya Vidhata गीत 
भारत के गौरवांवित इतिहास को स्मरण करके लिखा गया है 
जब भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, हमारा गौरवशाली 
इतिहास है.

बाद में भारत 900 साल के लिये गुलाम हो गया, पहले 700 साल मुगलों का और 200 साल अंग्रेजो का गुलामी के दौर में 

इस सोने की चिड़िया को बहुत नोचा खतोचा गया आर्थिक और सामाजिक रूप से लूट कर दौलात इस देश से बाहर भेज दी गई, सामाजिक जीवन को तहस नेहस किया गया, लोगों 

की धार्मिक और सामाजिक आजादी छिन् ली गई जबरन धर्म परिवर्तन किये गये और फिर धर्म के नाम से लोगों को आपस में लाडया गया, लोगों को गरीबी की कगार पर लाया गया. 

आजादी के लिये हमारे महापुरुषों ने बेइंतिहा कुर्बानिया दी 

तब भी अंग्रेज जाते जाते देश को बांट गये जो आज भी नासूर बना हुआ है, आपस में लड धन और ऊर्जा आज भी जाया कर रहे हैं, जैसा कि अंग्रेज चाहते थे. 

आजादी के बाद भारत ने कई सुनहरे सपने देखे कि भारत विश्व का सिरमौर बने , मगर हमारे राजनीतिक लोग पहिले अपना भविष्य सुधारणे में व्यथ हो गये. बीच बीच में देश का 

विकास भी हुआ जो बहुत धीमा था, हमारी आँख तब खुली जब हमारे साथ ही आजादी पाने वाला चीन हमसे 80 साल आगे निकल कर विकसित देश बन गया, जब कि उनकी आबादी भी हमारे देश जैसी विशाल थी, उनके राज नेताओं ने 

देश का पहले सोचा फिर राजनीति, मगर हमारे देश में अब भी राजनीति चल रही है और देश के विकास को ताक पर रखा जा रहा है. 

"भारत भाग्य विधाता " हमारे राष्ट्र गान में हमारे महान नोबेल पुरस्कार विजेता कवि श्री रबीन्द्रनाथ टैगोर लिख गये हैं,और हम सारे भारत वासी इसे गर्व से गाते हैं, लेखक ने इस गीत में 

भाग्य विधाता के सपने को साकार होते देखा है, और भारत आज भाग्य विधाता विश्व गुरु बन चुका है कल्पना को गीत में साकार किया है, आशा है हमें कोई ऐसा राष्ट्र नेता मिलेगा जो इस सपने को साकार करेगा. भगवान से प्रार्थना है वो दिन जल्द आये. 

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Monday, November 17, 2025

भारत चमकता तारा (Bharat Chamkata Tara)

Chamkta tara

Bharat chamkta tara
Bharat chamkta tara
                
                Image generated by: what app meta


 अब नया सवेरा आया है,
 उजियारा छाया चारों ओर 
 भारत फिर जग का सिरमौर, 
 सुनो गूँजता जयघोष हर ओर।

ना भ्रष्ट हाथों की जंजीरें,
ना रिश्वत की कोई दीवार,
ईमान की गंगा बही है, 
सच्चाई का सागर अपार ,

 रोशनी  से  जगमगाता ,
गाँव का हर कोना, 
कृषक के खेतों में सोना, 
मेहनत से रंग नया मिला,
ना भूख, ना बेरोज़गारी,
खुशहाल है हर जिला ..

 हर चेहरे पर मुस्कान,
शिक्षा, स्वास्थ्य, और सम्मान, 
यही है अब पहचान,
दिल्ली से लेकर कन्याकुमारी, 
हम सब हैं एक जान..

एकता का ये संगम है,

जहाँ हर जाति, हर भाषा में, 
तकनीक में, विज्ञान में,
चाँद और मंगल की धरती पर, 
भारत आगे है ज्ञान में..

नारी का अब गौरव बढ़ा,

हर बच्चा सपनों की मंजिल चढ़ा ,
भारत अब कर्मभूमि बनकर, 
हर नगर, हर बस्ती बोले,
हम हैं नव भारत के शोले...

अतिथि जो आए दूर देश से, 

कह दे मन से ,
ज्ञान, कला और संस्कृति के, 
दीपक भारत में जगमगाएँ ,
विश्व प्रसिद्ध भारत की कलाएं, 

सद्भावना, प्रेम, और शांति का,

धरती यह स्वर्ग समान बना, 
भारत भाग्य विधाता,
धन्य हो गये हम, 
इस देश ने जन्म से हमे चुना, 

विज्ञान का दीप जला,
अब ये आलम है,चला..
लगातार तरक्की का सिलसिला, 
 हम सबसे आगे हैं आज,
यही है बुलंद तिरंगे का राज।

अब न कोई अमीर, न गरीब, 
सबको मिले अधिकार समान,
 हर दिशा में सबका बढ़ा मान।
 हर बच्चा  यहाँ  अब पढ़ता ,
 भविष्य अपना गढ़ता है,

जग को राह दिखाता है भारत।
हरित क्रांति से नीली क्रांति तक, 
हर खेत में नव जीवन है,
 “हम सबके दिल में  है भारत ”

नतमस्तक हो जाए यहाँ,
 स्वर्ग यही है, यही जहान।”
सड़कों पर खुशबू प्रगति की, 
गगनचुंबी इमारतें गाएँ,
हम आ गये कहाँ..

मानवता का प्यारा तारा,
 जग में सबसे उजियारा।
हर भारतवासी गर्व करे अब, 
“ये भारत देश हमारा”

 यही हमारा सच्चा यथार्थ रूप,
अपना भाग्य स्वयं लिखा,
 नव भारत ने विश्व जीता ,
भारत वासी आनंद में जीता है!!!

कविता की विवेचना: 

भारत चमकता तारा/Bharat Chamkta Tara कविता भारत की अभूतपूर्व प्रगति की कल्पना की 
एक उड़ान है, जो लेखक ने चित्रित की है. 

 भारत की आज़ादी के बाद से हर भारत वासी भारत 
को एक विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में देखना चाहता है, 
जैसे अमेरिका कनाडा आदि देश हैं. परंतु क्यों हमारा सपना पूरा नहीं हो पाया, जबकि सारी समर्थ हम में 
है. 

क्या हमारे राजनेता नहीं कर पा रहे, क्या उनका स्वार्थ 
सिर्फ सता हथियाने तक है, क्यों नहीं मिटा भ्रष्टाचार 
क्यों नहीं शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य विश्व स्तरीय और फ्री, क्यों बेरोजगारी गरीबी ज्यादा, क्यों नहीं करते नेता पूरा अपना वादा. 

क्यों पूंजीवाद का राज है, क्यों पिछड़ा समाज है क्यों नहीं सबको आजादी का अधिकार, क्यों अधिकार मांगने पर पुलिस रही है मार, अंग्रेजो के ज़माने जैसी पुलिस क्यों है. 

"भारत चमकता तारा "हो हर भारत वासी की तमन्ना है 
भारत को एक ना एक दिन ये बनाना है, कोई महापुरुष
आयेगा एक दिन बन सच्चा भारत माँ का सपूत ,जो करेगा सपना यह सच. लेखक को इंतजार है,आप भी उम्मीदें जिंदा रखो. रियल राम राज आएगा एक दिन. 

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Sunday, November 2, 2025

परमात्मा आत्मा और भाग्य (Parmatma Aatma aur Bhagya)



Parmatma Aatma aur Bhagya

                             (Image from:pexels.com)


आत्मा, परमात्मा और भाग्य

आत्मा है ज्योति, अमर उजियारा,p
देह में बसता ईश दुबारा।
शुद्ध, अचल, निर्लेप, निरंतर,
साक्षी बनता सुख-दुख अंदर।

परमात्मा है अनंत सागर,
जहाँ नहीं कोई भय या आगर।
वो ही स्रोत सभी विचारों का,
वो ही अंत सभी व्यवहारों का।

भाग्य तो बस एक दर्पण है,
कर्मों का निर्मल पर्यायन है।
जो बोया हमने विचारों में,
वो ही खिलता है संसारों में।

आत्मा जब परमात्मा में लय पाती,
तभी सृष्टि की सच्ची थाती।
ना भाग्य शेष, ना माया बंधन,
बस प्रेम, प्रकाश और चिर आनंदन।

परमात्मा की कृपा जब बरसे,
तो भाग्य के द्वार स्वयं ही तरसे।
निर्मल आत्मा बनती पात्र वही,
जिस पर दृष्टि पड़े प्रभु सरीखी।

जिनके मन में करुणा, शांति, सत्य,
उनका जीवन बनता शुभ न्यत्य।
कर्म पवित्र तो फल मधुरतम,
कृपा से बदलता भाग्य अमरतम।

आत्मा की निर्मलता जब जागे,
तो अंधियारे में प्रकाश भागे।
परमात्मा की छाया में जो जीता,
वो ही सच्चे सुख का रस पीता...

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कविता की विवेचना:

"परमात्मा आत्मा और भाग्य" कविता मे निर्मलता तथा परमात्मा की कृपा से भाग्य के उत्तम होने की भावना दर्शायी गयी है. 

परमात्मा की कृपा सिर्फ भगवान के शरणागत में ही निहित है, सच्चे मन से जिसने नाम जपा भगवान के तप में तपा और आत्मा पवित्र सुद्ध कर ली उसने भगवान की लड पकड़ ली, वो परमात्मा का अपना हो गया. 

परमात्मा की कृपा अपनों पर सदेव बरसती है, भाग्य का उदय स्वतः ही हो जाता है जहां तुम्हारे साथ विधाता है. 

"परमात्मा आत्मा और भाग्य " कविता में यह स्पष्ट किया गया है, नाम जप परमात्मा की शरण आत्मा को पवित्र कर देती है और भाग्य सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है, लोक परलोक सब सुधर जाता है...एक ही जादू नाम जाप करो दिन रात भाग्य की होगी बरसात. 

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Monday, April 15, 2024

रिश्तों का सपना (Rishton ka sapna)

Sapna
               
Rishton ka sapna
Rishton ka sapna
Image from: pexels.com 


रिश्ते नाते जो भी हों..
अपने अपने से लगे..
संकंट में साथ छोड़ दें अपना..
ऐसे रिश्तों का फिर..
सुख में क्यों देखना सपना..

जब रोज रोज के कष्टों से..
टूट चुका हो तन मन..
तब  मिले सुखों का अम्बर..
तो जीवन लगता आडंबर..

जब वर्षा के इंतज़ार में..
किसान हो हताश और..
और फसल सूख बन बिखरे..
तिनका तिनका ..
तब हो रिमझिम वर्षा..
तो फ़ायदा है किनका..

छोटी छोटी खुशियो के लिये..
जब तरसा हो मन हर क्षण..
फिर किसी भी खुशी का आना.. 
है चित को बहलाने का बहाना ..

दिन रात हो रहे अपमानित..
जीने का ना रहा हो चित..
फिर मिले मान सम्मान का..
क्या रह जाता है औचित्य..

धन्य धान्य से हो संपन्न..
पर रोगों से काया हो छिन्न भिन्न..
ऐसी धन्य संपन्नता से..
मन हो जाता खिन्न ..

ईश्वर ऐसा वर दीजिये..
सब कुछ मिले अनुपात में..
सही समय पर हाथ में..
सभी रिश्ते नाते हो अपने..
हमें उनके और उन्हे हमारे..
निःस्वार्थ आते हो सपने..

सारे जगत को खुशियो से..
भर दीजिये..
सबका हिस्सा बराबर..
सबको दीजिये..
कहीं ना हो तडफ तिरस्कार..
सब हंसी खुशी रहे परिवार..
ऐसा हो प्रभु आपका संसार..!!

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कविता की विवेचना:

रिश्तों का सपना/Rishton ka sapna कविता आज के दुनियावी सत्य पर आधारित है, हर कोई अकेला किसी और दौड रहा है, अपनी मंजिल की ओर, किसकी मंजिल क्या है,दूसरे को पता नहीं. 

एक निर्धारित समय के बात मिली मंजिल खुशी किसी काम की नहीं, जैसे फसल सूख जाने के बाद वर्षा किसी किसान के काम की नहीं, जैसे दुःख में साथ छोड़ चुके रिश्ते सुख में किसी काम के नहीं. 

वैसे तो इंसान इस पृथ्वी पर अकेला ही आया है और उसे अकेले ही वापस जाना है, तब भी कुदरत ने कुछ 
रिश्ते बनाये हैं, इन्हें निभाना ना अनिवार्य है ना जरूरी है. 

मगर इंसान को कुदरत ने दिल दिमाग एहसास दिया है, 
कहीं ये रिश्ते निभाये भी जाते हैं और कहीं नहीं भी. 
निभाये तो स्वर्ग सा एहसास जीवन जिया जाता है. वर्ना एक ख़ामोशी और जीवन की सांसें चलती रहती हैं, ख़ामोश सी और जिन्दगी का दिया बिना अपनी लो बिखराये बुझ जाता है एक दिन. 

"रिश्तों का सपना "काश होता मेरा अपना, सपना भी तो मेरा ना था कभी सपने में रिश्ते मिलते थे जैसे अजनबी. कभी तो कुछ बोलेंगे मेरे जीते जी, वर्ना मौत की ख़ामोशी तो है ही. 

...इति...
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