Saturday, July 8, 2023

आँचल सी रहो (Aanchal si raho)

                 
Aanchal si raho
Aanchal si raho
Image from:pexels.com 


तुम मेरे ख्यालों में..
नदी सी बहों ..
हवा के झोंकों से..
कुछ कुछ कहो..
मेरे दिल में..
आँचल सी रहो..

मचलता है मन..
रूबरू होने को..
सपनों में दिखती हो..
ओझाल होने को..
दिल करता है..
आंखे बंद कर..
तेरा दीदार करू..
बाते हजार करू..

कल्पना के घोड़े..
दौड़ता हूँ..
कभी बहुत पास..
कभी दूर हो जाता हूँ..
नजदीकियां भाती हैं..
तेरी याद..
चलचित्र सी आती है..
शकुन पहुंचाती है ..

तुम पक्षी बन..
कहीं उड़ चली..
ना भायी मेरी गली..
उजड़ गया..
मेरा आशियाना..
रुसवाई था..
सिर्फ एक बहाना..
तुझे भाया..
परवाना बेगाना..

कैसे रास्ता रोक लू..
कैसे तुझे टोक दू..
अधिकार की डोर को..
तूने ही तो तोड़ा है..
मुझे अंजान..
मंजिल की ओर..
मोड़ा है..
कौन आया..
हमारे बीच रोड़ा है..

कचरें सामान सी..
तेरी यादे..
क्यों ढोता हूँ..
फेक दू कूड़ेदान में..
मगर फिर..
भावुक होता हूँ..
किसी पुरानी..
दिल की अलमारी में..
यादों को संजोता हूँ..

किसी अनजान..
मोड पर..
सारे बंधन तोड़ कर..
खडा हूँ अकेला..
सूना सूना लगे..
इस दुनिया का मेला..
इस मेले में..
खो जाऊँगा..
फिर भीड़ का..
हिस्सा हो जाऊँगा..
भुला नहीं तुझे..
मगर भुलायुंगा ..!!

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कविता की विवेचना: आंचल सी रहो/ Aanchal si raho कविता किसी चाहने वाले का दिल का गुबार है. 

सच्ची चाहत आज कल कहाँ रही, मगर अगर कोई धोखे से सच्चा चाहने वाला मिल गया तो उसकी कदर नहीं की ज़माने ने. उसे ना समझ ही समझा आज के तथाकथित समझदारी ज़माने ने. 

सच्चे चाहने वाले को अक्सर धोखा ही मिला है, इस भौतिक वादी युग में चाहत की कीमत कहाँ,जमाना
पूछता है, चाहत तो तेरी ठीक है पर दौलत कहाँ. 

प्यार काफी नहीं आज के जमाने में प्यार के साथ जरूरी है पैसा तो निभ ही जागेगा,तू हो चाहे जैसा. 
पैसे की खनक बेवफ़ा बना देती है. 

कसूर उनका नहीं है ज़माने का जिसने प्यार को पैसे से तोला और दौलत को प्यार का मापदंड बना दिया. 

"आँचल सी रहो " कविता में लाख ठुकराए जाने के बाद भी प्रेमी प्रेमिका की यादें संजोये रखना चाहता है, चाहते हुये भी नफरत नहीं कर पाता, और दिल को एक कोना अपने प्यार को दे देता है. 

... इति...

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Thursday, July 6, 2023

अनाड़ी (Anadi)

          
Anadi
Anadi
Image from : pexels.com 



सीख लिया है मैंने..
आंसुओ को पीना..
ग़म में..
सिसकते सिसकते जीना..
अच्छा हुआ तू..
बेगानी हुयी..
यही खत्म कहानी हुयी..

खत्म हुआ सिलसिला..
रिश्ता निभाने का..
ढकोसला था प्यार तेरा..
बोझ था ज़माने का..
जीते जी टूट गया बंधन..
मर कर टूटना ही था..
सात पल ना निभे..
सवाल कहाँ..
जन्मों जन्मों निभाने का..

जन्म से पहले..
तुम कहां थे..
और मैं था कहाँ..
और मरने के बाद..
जाओगे कहाँ..
जब कुछ पता नहीं..
तो ग़म किस बात का..
अकेले ही..
इस दुनिया में है..
आना जाना..
कभी पिछले..
जन्म के रिश्ते को..
किसी ने ना पहचाना..

अच्छा हुआ मैंने..
ना ली साँसे उधार तेरी..
हिम्मत ना थी..
इन्हें लौटाने की..
मेरी सांसों का..
एहसास होगा तुम्हें भी..
रख लो..
अब जरूरत नहीं..
इन्हें लौटाने की..
मेरी जिंदादिली..
याद दिलाती रहेगी..

नजरों में बसाया था..
"तुम्हें..."
अब किरकिरी सा..
चुभता है..
कोई दवा नहीं मिल रही..
इसे मिटाने की...
तुम मेरी नजरों से ..
हट जाओ दूर..
मुझे आखों में..
जहान बसाना है..
जरूरत नहीं अब..
तेरी तस्वीर बसाने की..

मेरी धडकने ..
तुम साथ ले गये..
"बेधडक.."
नहीं समझी.. 
औपचारिकता भी ..
इन्हें वापिस लौटाने की..
छल के हर लिया..
दिल विल मन मेरा..
कितना स्वार्थी है..
स्वभाव तेरा..

खरीदी करने..
निकले तुम ..
थोडा सा दिल..
थोडा सा मन..
थोडा सा यार..
थोडा सा प्यार..
सब लिया उधार..
था सब अनमोल..
मगर किया तूने..
तोल मोल..
नापा, नफा नुकसान ..
सद्बुद्धि दे तुम्हें भगवान..

अचानक तुझे..
प्यार के बाजार में..
सौदा नया जचा ..
पुराने में अब..
इंट्रेस्ट ना बचा..
मैं सौदा बन..
अवाक रह गया..
और तुम बने..
चतुर व्यापारी..
सारी दिल की दौलत..
तेरे सामने हारी..
सच है दुनिया वालों..
मैं निकला अनाड़ी..!!

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कविता की विवेचना: 

अनाड़ी/Anadi कविता एक सच्चे प्रेमी बनाम एक व्यापारिक दृष्टी कोण वाली तथाकथित आधुनिक प्रेमिका की कहानी है.

एक तरफ प्रेमी अपना सर्व अपने प्यार के लिये लुटाने को तैयार है और प्रेमिका इसे एक अच्छे या बुरे सौदे के रूप में जांच परख रही है, साथ ही इससे और बेहतर सौदे की भी उसे तलाश है. 

जब तक मन चाहा सौदा नहीं मिलता, पुराने को और जांचा परखा जा रहा है, और किसी तरह काम चलाया जा रहा है. 

जैसे ही किसी सलाहाकार ने सलाह दी, नया सौदा समझाया, पुराने को तोड़ने में पल भी ना लगाया, और बेरहमी से तोड़ दिया रिश्ता पुराना, दिल पर क्या 
बितेगी हाल भी ना जाना. नये सौदे के साथ हो लिये.

"अनाड़ी " कविता आज के भौतिक वाद ज़माने को रेखांकित करती है  जहा भावनाऔ का कोई मोल नहीं 
कोई त्याग कुर्बानी अब कोई प्यार में नहीं करता, हर कोई दौलत और भौतिक सुखों के लिये मरता, उसके लिये चाहे मर्यादित सीमा लाघनी पडे. 
किसी से दिल ना लगाना, कब हो जाये बेगाना..

...इति...

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